लॉक डाउन मे खिलाड़ी, कोच और रेफरी को ऑन लाइन कोचिंग दे रहे उत्तराखंड के पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी और क्लास वन रेफरी विरेन्द्र सिंह रावत

शि.वा.ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी, वर्तमान राष्ट्रीय कोच और क्लास वन रेफरी विरेन्द्र सिंह रावत 60 दिन से लॉक डाउन मे खिलाड़ी, कोच और रेफरी को ऑन लाइन कोचिंग दे रहे है। देहरादून फुटबाल अकैडमी के संस्थापक अध्यक्ष और हेड कोच, उत्तराखंड फुटबाल रेफरी एसोसिएशन के सचिव विरेन्द्र सिंह रावत ने अपना 40 साल फुटबाल खेल का अनुभव लॉक डाउन के तहत फेसबुक, इंस्टॉग्राम, ट्विटर, वटसअप ऑन लाइन समस्त फुटबाल खिलाडी, कोच और रेफरी के साझा किया करते हुए बताया कि कैसे फुटबाल खेली जाती है और खिलाड़ी, कोच और रेफरी मे क्या-क्या गुण होने चाहिए। उन्होंने बताया कि अगर आपको फुटबाल खेलनी है तो ग्राउंड मे टीम किन किन फॉरमेशन और पौजीशन मे खेलना चाहिए। 

क्लास वन रेफरी विरेन्द्र सिंह रावत ने बताया कि हमने जीवन मे कोच होते हुवे 4 टाइप की फॉरमेशन और पोजीशन का प्रयोग किया है। दूसरी टीम की स्थिति को देखकर और अपने खिलाडियों की प्रतिभा को देखकर कोचिंग दी जाती है और उसका  रिजल्ट ये रहा कि अच्छी से अच्छी टीम को हराकर अपने जीवन काल मे बेह्तरीन मैच जीते है।


श्री रावत ने बताया कि कोच अच्छा हो और खिलाड़ी पूर्ण ईमानदारी से खेले तो जरूर विजय दिलाता है और वो जीत पहले प्रत्येक खिलाड़ी की होती है, उसके बाद कोच की होती है। उन्होंने कहा है कि मैच मे अकेले फॉरवर्ड गोल मारने वाला हीरो जरूर होता है, लेकिन जो उसके सहयोगी उसकी मदत करते है वो उससे बड़े हीरो होते है। सभी का अपना अपना कर्तव्य और दायित्व होता है और उससे ऊपर कोच की मैच से पूर्व की गई प्लानिंग होती है। टेक्निकल, टेक्टीकल, चाणक्य नीति, रेफरी और आयोजक पर बेह्तरीन दिमाग से प्रभावित करना होता है। उस काम को कोच शांत और सूझ बुझ से करता है। उनका मानना है कि क्रोध में अगर जो कोच होगा और अपने खिलाडियों को गाली गलोंच से व्यवहार करेगा तो टीम और खिलाड़ी अछा रिजल्ट नहीं देगी। कोच को प्रत्येक एक खिलाड़ी से अलग से वार्ता करनी होती है, उसके सुख दुख शारीरिक कष्ट को कोच को समझना होता है। कोच उसको मैच के लिए प्रोत्साहित करता है। उनका मानना है कि गोल कीपर को भी बेह्तरीन तरीके से बचाव की कोचिंग देनी होती है। स्टॉपर ( लेफ्ट, राइट्, सेंटर स्टॉपर) को आपस मे कैसे गोल कीपर के साथ आपस मे तालमेल और मिड फील्डर ( लेफ्ट, राइट्स, सेंटर) के साथ भी बना के रखना होता है। श्री रावत ने बताया कि साथ ही साथ फॉरवर्ड के साथ आई कोंनटेक्ट होना चाहिए और मिड फील्ड्रर टीम का एक बेह्तरीन डिस्ट्रीब्यूटर होता है कि किस बाल को कैसे और कहा देनी चाहिए। उसके ऊपर बहुत ज़्यादा जिम्मेदारी होती है। जिस टीम का मिड फील्डर का बेहतर स्किल और स्टेमिना होगी, वो टीम बेहतर प्रदर्शन करती है। उसको स्टॉपर और फॉरवर्ड दोनों के साथ बेह्तरीन ताल मेल बनाना होता है। फारवर्ड की भी जिम्मेदारी होती है कि वो स्टॉपर और मिडफील्डर से बाल को लेकर गोल मे तब्दील करे। जब सभी का आई कोंटेक्ट और बेह्तरीन पास अछा होगा तो विजय जरूर होगी। इसके लिए आपको कई महीनों कई सालो की मेहनत होती है, तभी आप एक बेह्तरीन खिलाड़ी बनते है।


क्लास वन रेफरी विरेन्द्र सिंह रावत का मानना है कि जिस खिलाड़ी के पास स्टेमिना, स्किल, फुट वर्क, हेड वर्क, चेस्ट वर्क,  कोन्फ़ीडेनस, अछा पास, आई कोनटेक्स्ट बेहतर होगा वो अछा खिलाड़ी बनेगा। एक स्टॉपर पूरे मैच मे 90 मिनट के मैच मे अगर अच्छा खेले तो 5 किलोमीटर दोड़ता है। मिडफील्डर 15 किलोमिटर और फॉरवर्ड 5 किलोमीटर दौड़ता है। अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए आपके अंदर सर्वप्रथम अनुशासन, आपका खाना, फिटनेस, ज्ञान और एकता, जुनून, आपका ड्रेस कोड, आपके शरीर की साफ सफाई, चालाकियां खेलते हुवे केवल अगर है तो आप अछे से अछे खिलाड़ी को मात दे सकते है और अपडेट होना चाहिए। उनका मानना है कि खिलाडी को साथ-साथ कोचिंग की ट्रेनिंग बेहतर करनी होती है। खिलाड़ी को खेल का कोच को कोचिंग का और रेफरी को रेफरी का अछा ग्यान होना चाहिए और फिफा के नियम के बारे मे जानकारी होनी चाहिए। जीवन मे कभी भी कहीं भी किसी भी बड़े खिलाड़ी को देखकर डरने की जरूरत नहीं है। उसके भी दो पैर है और आपके भी दो पैर है, जो अछा खेलेगा खेलेगा वो टीम का हीरो होगा। उन्होंने सभी को स्पष्ट संदेश दिया है कि स्वस्थ रहे, मस्त रहे, फिट रहे और हमेशा नशे से दूर रहे। हमेशा साफ-सफाई करते रहे और घर पर रहे व्यस्त रहे।