एडवोकेट लवी अग्रवाल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हे मानव!
तुम शक्तिपुंज हो....!
अन्तस् में छिपी है ऊर्जा असीम
तुमसे जगमगा सकता है संसार!
तुममें है वह शक्ति अपार!
यह न कहानी है न चमत्कार!
केवल तुम्हें जागना है
फिर देखना महिमा अपरंपार!!
शक्ति को छिपना ही होता है
जन्म-जन्मांतर के छल प्रपंच!
होते हैं सञ्चित मानस में
रहता अंधियारा दिग्दिगन्त!
किल्विष कर्मों ने छीना
प्रकाश का उन्मुक्त प्रसार!!
भयभीत होकर घिर जाते हो
बाधाओं से घबराते हो
तुम हो व्यथाओं से अस्तव्यस्त
व्यथा, व्याकुलता से भाग्य अस्त!
भूल गए खुद को हनुमान
रुक गया भाव का विस्तार!!
भवितव्यता का भयभार
नष्ट करता क्षमता अपार
आत्मा की निद्रा मन की मुक्ति
जाग्रत हो जो आत्म शक्ति
प्रतीक्षा करता मिलेगा
वहीं जीवन का सार....!!
वह कल्याणी निरभिमानी
जिसने समझी उनसे जानी
वह है सब गुरुओं की बानी
नेत्रकमल खिल जाएं जिससे
वह अद्भुत सिमरन करतार...
उसी से खुलता है कल्याण का द्वार!!
राष्ट्रीय निदेशक एंटी करप्शन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
Tags
poem