नृत्य भारतीय प्राचीनतम संस्कृति का अभिन्न अंग है (विश्व नृत्य दिवस पर विशेष)


राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


नृत्य मानव जीवन का एक अहम हिस्सा है। इसका इतिहास युगों पुराना है। कहते हैं कि भगवान शिव से बढ़कर नृत्य करने वाला तीनों लोकों में नहीं है, इसीलिए कारण भगवान शिव का एक नाम नटराज भी है। भगवान शिव ने ही नृत्य की शिक्षा गन्धर्वो एवं विद्याधरों को दी थी। भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र में नृत्य दो सिद्धांतों पर आधारित है, लास्य एवं तांडव। तांडव शैली की स्त्री और पुरुषों के द्वारा सम्पन्न किया जाता है। जैसे प्रलयकालीन समय में जब भगवान शिव सृष्टि का विनाश करने को उद्यत होते हैं, तब महाकाल का रूप धारण करके भगवान शिव महाकाली का आवाहन करते हैं और दोनों महाकाल एवं महाकाली तांडव नृत्य करते हैं।



वास्तव में यहीं से प्रासंगित चित्रण उतारकर जगत में तांडव नृत्य को स्थापित करके नृत्य में इसे अहम रूप दिया है। लास्य शैली प्रेम को उजागर करने वाली शैली है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण जी ने द्वापर युग मे गोपियों के साथ रासलीला के रुप मे रास नृत्य किया। इसी को सारबद्ध रूप से चित्रित करके नृत्य का हिस्सा बनाया गया है। वास्तव में यह समर्पण को दर्शाता हुआ नृत्य है। नृत्य पर विस्तृत इतिहास को उजागर करने वाला नाट्यशास्त्र है, जिसके प्रणेता भरत मुनि है। मानव अस्तित्व में इसके प्रादुर्भाव के प्रचलन का सही समय अवधि का पूर्ण अनुमान नहीं है। भिन्न-भिन्न आचार्यों के द्वारा भिन्न भिन्न समय अवधि बताई जाती है। भारत के विभिन्न मंदिरों में बने हुए गन्धर्वो के और नृत्यांगनाओं के नृत्य शैलियों में बने चित्र एवं मूर्तियां इस रूप को दर्शाती है कि वास्तव में नृत्य का उद्भव चिरकाल में हो गया था, परन्तु इसको तदवद रुप देने में काफी समय लगा होगा। 



भरतमुनि ने नृत्य के नौ भाव बताए हैं, जो सहसा ही नृत्यांगनाओं व नर्तकों के द्वारा नृत्य करने की विविध शैलियों में प्रकट होते है। श्रृंगार, करुण, बीभत्स, रौद्र, हास्य, शौर्य, विलक्षण, शांति, भय। इन भावों को जब संगीतबद्ध किया जाता है तो अवलोकन करने वाले सहसा ही आकर्षित हो जाते हैं। इनमे से कई शैलियां ताल पर आधारित है ।



भारत में अनेकों प्रकार के लोकनृत्यों का उद्भव हुआ। अलग-अलग प्रान्तों में तरह तरह के नृत्य किए जाते हैं। मोहिनीअट्टम शास्त्रीय नृत्य का अभिन्न अंग है, जो किसी विशिष्ट प्रकार के संकेत पर आधारित नृत्य है। यह नृत्य भारत के केरल में प्रचलित है। भारत के अष्ट पुरातन परम्पराओं को तदवद रूप दिए हुए सत्त्रिया नृत्य भारत के पूर्वी प्रान्त असम के प्रमुख नृत्य है। युगल प्रेम के उद्गाता श्रीराधा कृष्ण के रासलीला पर आधारित मणिपुरी (मणिपुरम) नृत्य भारत के मणिपुर के प्रसिद्ध नृत्य है। इसी तरह से भारत के हर प्रान्त में  नृत्य की भिन्न-भिन्न शैलियां प्रचलित है। कुचिपुडी, कथकली, कथक आदि नृत्य की बेहतर शैलियों में से एक है। भारतवर्ष में भरतनाट्यम नृत्य शैली सबसे प्राचीनतम शैलियों में से एक है, इसे नृत्यों की जननी के रूप में भी जाना जाता है। इसके नृत्य के सांकेतिक परिदृश्यों का वर्णन नाट्यशास्त्र में भी वर्णित है। तमिल में इस नृत्य का सर्वाधिक प्रचलन है। 



नृत्य की गरिमा और भारतीय प्राचीनतम संस्कृति को बनाए रखने के लिए नृत्यांगना के द्वारा नृत्य कला को संजोने एवं उस प्राचीन शिक्षा को पीढ़ीदर पीढ़ी सिखाने में अहम योगदान रहा है। नृत्य दिवस विश्व पटल पर भी इतिहासरत है। विश्वस्तर पर 29 अप्रैल को विश्व नृत्य दिवस मनाया जाता है। नृत्य वास्तव में शब्दों के भावों का गूढ़ अर्थ हृदयंगम करने की प्रक्रिया है, जो लास्य करते हुए शरीर के चारों तरह हाथों की कुशलता पर आधारित होती है।



संस्कृति संरक्षक, आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश


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