लाॅकडाउन का सबक, जीतने का संकल्प 


आशुतोष, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


लाॅकडाउन में संकल्पों,आशाओं और अनेक प्रकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए श्रद्धा भक्ति के साथ उन सपनो को पूरा करने का प्रयास होना चाहिए, जो हमारे भविष्य को सुरक्षित करे। पूर्वजों ने एक संस्कार, एक सामाजिक व्यवस्था और एक नेक माहौल हमें दिया था। वैसे ही भारत के लिए सपना देखना हम सब की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। संकल्प ही नही उसे पूरा करने का निरंतर प्रयास सबक के साथ होना ही चाहिए। इस डर भय का माहौल बनाता महामारी जो अपनो से दूर ले जाती जिन्दगी को इन खुली ऑखो ने पल पल देखा सुना जाना तो यह एक अनुभव के साथ गलतियों के लिए सबक होनी चाहिए ।


जैसा कि हम सभी जानते है यह देश ऋषि-मनीषियों के साथ साथ राजा महाराजाओं तथा दैत्य दानवों वीर योद्धाओ महात्माओ से भरा रहा है। जिसका विस्तार से वर्णण हमारे विभिन्न ग्रंथो साहित्य और इतिहासो में दर्ज है। यहाँ की प्राकृतिक छटा अलग-अलग है। सभी ऋतुओ का अलग अलग प्रारूप है। फिर भी यहाँ कि अनेक विविधता के बाद भी संविधान और सिस्टम सभी को समान अवसर देती है। सभी एक दूसरे पर निर्भर करते है एक जीव दूसरे पर आश्रित हैं। यह हमारी पृथ्वी की सुन्दरता की मिशाल है। सोचनीय स्थिति तब बन जाती है, जब हम पेड़ो जीवो प्राणियो को नष्ट करते हैं। विकास की पटरी दौडाने के लिए जंगल काटे जाते है। घर-मकान बनाने के लिए पत्थर और पेट भरने के लिए, जीव और स्वार्थ सिद्धि के लिए मानव से दानव बन जाते हैं। कहाँ आ गये हम ? ऐसे में न तो हमारी पृथ्वी सुन्दर और सुसज्जित लगेगी और न ही बैलेंस सही होगे तो डगमगाना तो पडेगा, जैसा कि मौसम और कोरोना महामारी से हो रहा है।


हम सभी का फर्ज बनता है कि सभी तरह की विरोधाभासो को खत्म कर एक सामंजस्य की राह पकड़े, जिसमें सबकी भलाई निहित है। छोटे-छोटे स्वार्थ को छोड़कर दूरगामी परिणामों की ओर सोच को ले जाएँ, जहाँ नैतिकता हो, जहाँ न्याय हो, जहाँ करूणा हो, जहाँ आचार-विचार और संस्कार हो। वैसे मार्ग प्रशस्त करने होंगे, ऐसा संकल्प हम सभी को इस लाॅकडाउन में लेकर आगे बढ़ना होगा। ऐसे लोगो से दूर होना होगा, जहाँ बीमारी परोसी जाती है, जहां असावधानियाँ है, उन्हे सावधान करना होगा। यह हमारे जीवन का मूल उद्देश्य होना चाहिए। मानव तो सभी पर दया करने वाला विवेकशील प्राणी है। अगर वह प्रकृति संरक्षण को नही सोचेगा तो आखिर यह प्रकृति बचेगी कैसे और कैसे संरक्षित और संवर्द्धित होगी। 


हमारे आर्दश अब क्षुण्ण होने लगे है, जिससे राक्षसी प्रवृत्ति का वास मानवो में होने लगा है। एक दूसरे को देखकर जलना, द्वेष रखना, हानि पहुँचाना हमारी कल्चर बनती जा रही है। देश के युवा पीढ़ी और सामाजिक संगठनो को आगे आना होगा, ऐसे अतिक्रमणकारियो से निपटना होगा। जरा-जरा सी बात पर बम पिस्तौल निकाल लेना, बात बढ़ जाने पर चला देना, ऐसे तमाम चीजे है, जिसका निपटारा लोग चाहे तो कर सकते हैं। अपनी रोजमर्रा की रूटीन परिवर्तन कर नये संकल्पो के साथ, लेकिन उनमें इच्छा तो जगानी होगी। उन तमाम बुद्धिजीवियों को आगे आने की जरूरत है, जो सामाजिक स्तर पर सुधार के लिए दिन-रात प्रयत्नशील रहते हैं। ऐसे चलन को रोकना होगा। आवाज बुलन्द करनी होगी, तभी सही मायने में विजय का अगाज होगा।


पटना बिहार


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