कोरोना से भी भयंकर बीमारी' कमी परवरिश या शिक्षा की?


डा.ममता भाटिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


आज विश्व में फैली महामारी कोरोना के खिलाफ भगवान स्वरूप कार्य कर रहे डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ व पुलिसकर्मियों पर एक वर्ग विशेष के हमले व अश्लील हरकतें निश्चित रूप से आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया है। इस प्रकार की घटना ने पूरे समाज को झकझोर दिया है। लॉकडाउन के बाद जिस प्रकार लोगों ने स्वयं को घरों कैद कर लिया था और कोरोना से लड़ने के लिये सभी एकसाथ खड़े हो गये थे, लेकिन बीच में आई कुछ खबरों ने लोगों के होश उड़ा दिये। इससे एक ओर जहां पुलिस-प्रशासन की नींद उड़ गई, वहीं दूसरी ओर पूरा समाज इस बात से सशंकित हो गया कि शायद लॉकडाउन का जो मकसद था, उसमें हम कहीं असफल न हो जाएं।


इस ज्वलंत प्रश्न पर मंथन करने पर दो बिंदु सामने आये। ऐसे वर्ग में या तो शिक्षा के साथ जागरूकता का भयंकर अभाव है या कहीं न कहीं परवरिश की। इसके लिये मदरसा संस्कृति भी किसी हद तक जिम्मेदार है, जहां मासूम बच्चों के दिमाग में प्रारम्भ से ही नकारात्मक सोच और ऊर्जा का रोपण किया जाता है। वह सोच उन्हें तमाम जीवन वैज्ञानिक तर्क के खिलाफ कट्टरपंथी बना देता है। दूसरा बचपन से ही परवरिश के दौरान उन्हें ऐसी तालीम दी जाती है कि उन मासूम बच्चों का इन हरकतों से उभरना अत्यंत मुश्किल हो जाता है। लड़कियों को उच्च शिक्षा न देना, कम उम्र में शादी और इन धार्मिक गुरु व मौलानाओं की धार्मिक दुकाने चलाने के लिए इन अशिक्षित व कट्टरपंथी लोगों के इस्तेमाल ने देश को इस कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इस बात से हैरानी होती है कि ऐसे कठिन समय में पवित्र कार्य करने वाले डॉक्टर पर हमला व नग्नता का प्रदर्शन और उससे भी कष्टकारी खबर कि चैनलों में चल रहे वाद-विवाद में धार्मिक गुरुओं व उलेमाओं का समर्थन करना।


देश में 400 कोरोना बम देने वाले मौलाना मोहम्मद साद का यह वक्तव्य कि जमात के दौरान मस्जिद में आई मौत से बेहतर क्या होगा, एक बंद दिमाग का परिचायक है। इस प्रकार की सोच ने पूरे देश को मौत के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया। फिर उन 400 लोगों का क्या जिन्होंने अपने भविष्य की विषय में बिना अंजाम को सोचे ऐसा खतरनाक निर्णयले लिया। कल हम इस आपदा से अवश्य निकल जाएंगे, लेकिन भारतीय इतिहास व समाज भविष्य इन्हें कभी माफ नहीं करेगा। हालांकि इस प्रकार की घटना पहली बार नहीं हुई है। पहले भी पोलियो की दवा पिलाने जाने वाली टीम के साथ भी इस प्रकार की बदसलूकी की कई घटनाएं देश के विभिन्न भागों में होती रहीं हैं। इन भटके हए युवकों को धर्म की दुहाई देकर इन्हें राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से जोड़ा गया है। ये चंद लोग पुरे एक वर्ग को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं, परन्तु यह भी सच है कि इस समाज से कोई बड़ा नेता इसे समझाने व या गलत बातों का गलत कहने के लिए आगे नहीं आता और यदि आता भी है उसका तस्लीमा नसरीन जैसा हश्र कर दिया जाता है। अब इस समस्या से निजात पाना है तो सर्वप्रथम कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। जैसे समान वैश्विक शिक्षा प्रदान करने के साथ मदरसे व दारूलउलूम जैसी दुकानों की गतिविधियों को प्रतिबंधित करना होगा। सभी की एक जैसी शिक्षा प्रदान करने के साथ उर्दू को वैकल्पिक विषय के रूप में रखा जाए, ताकि उच्च शिक्षा के साथ साथ उन्हें अपनी भाषा का ज्ञान रहे। इसके अलावा आवश्यकता है कानून सख्त बनाने और फास्ट ट्रैक कोर्ट की जो इस प्रकार के मुकदमों की सुनवाई कर शीघ्र फैसले दे।


विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, विद्या नॉजेल पार्क


Post a Comment

Previous Post Next Post