राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
प्राचीन काल में जब विद्युत का अविष्कार नहीं हुआ था तब लोग रात के वक्त इसी दीपक का सहारा लेते थे। एक छोटा सा दीपक बड़े कक्ष को भी प्रकाश से आलोकित कर देता है। जिस तरह से दीपक जिस जगह स्थापित होता है वहां कई कीट पतंगे आकर्षित होकर मर जाते हैं, उसी भांति दीपक के नीलरक्त आंतरिक लौ में एक ऐसी देदीप्यमान अथाह ऊर्जा होती है, जिसमें अनंतानंत नकारात्मक ऊर्जा इसी लौ में एकीकार होकर भस्म हो जाती है।
इस श्लोक से समझिए-
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते।।
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते।।
संस्कृति संरक्षक, आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश
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