आशीष कुमार उमराव पटेल, शिक्षा वाहिनी समाचारपत्र।
यह कोरोना पर भी लागू होता है। सोशल मीडिया में लोग तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं सड़कों पर नीलगाय और हिरणों के विचरण की। यह भी कि प्रदूषण में भारी कमी आयी है। लेकिन इसके दुसरे पक्ष के ऊपर विचार कीजिये। अस्पतालों में व्च्क् बंद हैय इसके बावजूद इमरजेंसी में भीड़ नहीं है। तो बीमारियों में इतनी कमी कैसे आ गयी? माना, सड़कों पर गाड़ियां नहीं चल रही हैंय इसलिए सड़क दुर्घटना नहीं हो रही है। परन्तु कोई हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज या हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं भी नहीं आ रही हैं। ऐसा कैसे हो गया की कहीं से कोई शिकायत नहीं आ रही है की किसी का इलाज नहीं हो रहा है? दिल्ली के निगमबोध घाट पर प्रतिदिन आने वाले शवों की संख्या में 25-30 प्रतिशत की कमी आयी है। दिल्ली छोड़िये साहब बनारस का हाल देखे हरिश्चन्द्र घाट पर औसतन प्रतिदिन 80 से 100 शव आते थे आज करोना के माहौल मे प्रतिदिन 20 या 25 डेड बॉडी आ रही हैं इसी तरह मणिकरणिका घाट पर भी यही हालात वहॉ के डोम राज परिवार भी आश्चर्य चकित होते हुए बताते है की ये सन्धि मौसम है (जाड़े से गर्मी मे जाना) इस समय हर साल डेड बॉडी मे बढ़ोत्तरी होती है परन्तु पता नही क्यो भारी कमी है डेड बाडी की जबकी केवल ठभ्न् से प्रतिदिन10 से 15 शव आते थे वो एक दम बन्द है अस्पतालों में जो मरीज भर्ती हैं वो सब पहले के है नये मरीज की भर्ती नही हो रही तो वाकई मे ये आश्चर्य चकित करने वाला है की सारी बीमारी गायब है क्या कोरोना वायरस ने सभी बिमारियों को मार दिया...? नहींस यह सवाल उठाता है मेडिकल पेशा के वाणिज्यीकरण का। जहाँ कोई बीमारी नहीं भी हो वहां डॉक्टर उसे विकराल बना देते हैं। कॉरर्पोरेट हॉस्पिटल के उद्दभव के बाद तो संकट और गहरा हो गया है। मामूली सर्दी-खांसी में भी कई हजारों और शायद लाख का भी बिल बन जाना कोई हैरतअंगेज बात नहीं रह गयी है। अभी अधिकतर अस्पतालों में बेड खाली पड़े हैं। मैं डॉक्टरों की सेवा की अहमियत को कम करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। कोविद १९ में जो सेवा दे रहे हैं उन्हें मैं नमन करता हूँ। लेकिन डर कुछ ज्यादा ही हो गया है। बहुत सारी समस्याएं डॉक्टरों के कारण भी है। इसके अलावा लोग घर का खाना खा रहे हैं, रेस्तराओं का नहीं। इससे भी फर्क पड़ता है। अगर ैलेजमउ अपना काम ठीक से करे और लोगों को साफ पानी पीने का और शुद्ध भोजन मिले तो आधी बीमारियां ऐसे ही खत्म हो जाएंगी। कनाडा में लगभग ४-५ दशक पूर्व एक सर्वेक्षण हुआ था। वहां लम्बी अवधि के लिए डॉक्टरों की हड़ताल हुई थी। सर्वेक्षण में पाया गया कि इस दौरान मृत्यु दर में कमी आ गयी। स्वास्थ्य हमारी जीवनशैली का हिस्सा है जो केवल डॉक्टरों पर निर्भर नहीं है। यह एक पेशागत यथार्थ है कि डॉक्टर हमेशा चाहेगा कि ज्यादा से ज्यादा मरीज उसके पास आए ,वकील हमेशा चाहेंगे कि उसके पास अधिक से अधिक विवाद आये । जो भी हो, सवबाकवूद से परेशानियां हैं जो अपरिहार्य हैं लेकिन इसने कुछ ज्ञानवर्धक एवं दिलचस्प अनुभव भी दिए हैं। जरा सोचिये...!
अकादमिक कैरियर मेंटोर व डायरेक्टर गुरु द्रोणाचार्य आईआईटी, नीट एनडीए अकादमी सहारनपुर