शि.वा.ब्यूरो, नई दिल्ली। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने परीक्षाओं में ओएमआर शीट्स पर मार्क की गई प्रतिक्रियाओं को कैद करने के लिए एक नयी उन्नत ‘इमेज टेक्नोलाजी’ आधारित पअति-डिजि स्कोरिंग अपनाई है जिससे न केवल समय बचेगा, बल्कि यह सस्ता होगा।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया, डिजि-स्कोरिंग का इस्तेमाल इस बोर्ड द्वारा पहली बार प्रधानाचार्यों और केवीएस के सहायक आयुक्तों की भर्ती परीक्षा में आॅप्टिकल मार्क रिकग्निशन ;ओएमआरद्ध शीट्स पर जवाब को कैद करने के लिए किया गया था। यह परीक्षा हाल ही में आयोजित की गई थी। सीबीएसई चेयरमैन आरके चतुर्वेदी ने नई दिल्ली में शहर के संयोजकों की एक बैठक में ‘डिजि-स्कोरिंग’ पहल सामने पेश की
सीबीएसई बोर्ड द्वारा क्लास आठवीं तक त्रिभाषा फाॅर्मूला लागू है। तमिलनाडु और पुड्डूचेरी को छोड़कर अन्य राज्यों ने आठवीं तक तीन लैंग्वेज को जगह दी है। इसके तहत हिंदी इंग्लिश के अलावा आठवीं अनुसूचित में शामिल 22 भाषाओं में से किसी एक भाषा को स्टूडेंट्स चुन सकते हैं। इसमें संस्कृत भी शामिल है। हिंदी राज्यों में क्लास दसवीं तक संस्कृत की पढ़ाई अनिवार्य हो जाएगी। तीन लैंग्वेज बढने के साथ स्टूडेंट्स पर बोझ भी बढ़ेगा।
इसके साथ ही अब आईसीएसई का पाठ्यक्रम भी सीबीएसई जैसा ही होगा। दोनों ही बोर्ड के पाठ्यक्रम में अब एकरूपता लाई जा रही है। अगले सत्र से सीबीएसई पैटर्न पर आधारित ये पाठ्यक्त्रम लागू भी कर दिया जाएगा। कक्षा नौ और ग्यारह में इसे लागू कर दिया गया है। इस तरह 2018 में इस नए पाठ्यक्त्रम के आधार पर ही आईसीएसई बोर्ड की परीक्षाएं होंगी।
सेंट थाॅमस के टीचर जोजफ ने बताया कि बताया कि अब सभी मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षाएं सीबीएसई द्वारा कराई जा रही हैं। इन परीक्षाओं का पैटर्न भी सीबीएसई के पाठ्यक्रमों के आधार पर ही होता है। यही वजह है कि आईसीएसई के पाठ्यक्रम में ये बदलाव जाया जा रहा है.प्रतियोगी परीक्षाओं को देखते हुए कक्षा दस के बाद आईसीएसई बोर्ड के बच्चे सीबीएसई बोर्ड में शिफ्ट हो रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए आईसीएसई बोर्ड ने पाठ्यक्रम में बदलाव करने का निर्णय लिया है।
सेंट फ्रांसेस के सीनियर टीचर जोन एंथोनी ने बताया कि आईसीएसई के स्कूलों में कक्षा एक से आठ तक का सिलेबस भी अलग अलग होता था। लेकिन अब सभी आईसीएसई स्कूलों में एक ही सिलेबस से पढ़ाई होगी। अगले सेशन से इसे हर स्कूल में लागू भी कर दिया जाएगा। इससे किताबों में भी एकरूपता आ सकती है। हालांकि ये भी संभव है कि हर स्कूल की किताबें एक जैसी न हों। हर स्कूल के पढ़ाने का तरीका अलग होता है। इसका अच्छा नतीजा निकलने के कयास लगाये जा रहे हैं।
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