हवलेश कुमार पटेल, शिक्षा वाहिनी समाचारपत्र।
कहते हैं सुपरस्टार पैदा नहीं होते बल्कि बनते हैं जैसे कि रजनीकांत। इन्होंने संघर्षमय जीवन व्यतीत किया और साबित कर दिया की आदमी अपनी मेहनत से कहीं भी पहुंच सकता है। उन्होंने एक कुली से विश्व के एक लोकप्रिय अभिनेता होने का सफर तय किया। रजनीकांत साउथ के ऐसे अभिनेता हैं जिनके बारें में हम कह सकते हैं कि बस नाम ही काफी है। साउथ इंडियन सिनेमा में लोग रजनीकांत को भगवान की तरह पूजते हैं यहां तक कि लोगों ने उनका एक मंदिर भी बनवाया हुआ है। कहा जाता है कि रजनीकांत बड़े दिल वाले इंसान हैं और जो कोई भी उनसे मदद मांगने जाता है, कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता। वह हर किसी से समान व्यवहार करते हैं। रजनीकांत के फैंस केवल भारत में ही नहीं हैं बल्कि विदेशों में भी उनके लाखों चाहने वाले हैं।
रजनीकांत का जन्म 12 दिसम्बर 1950 में बंगलौर में हुआ था। उनकी मां का नाम जीजाबाई और पिता का नाम रामजीराव गायकवाड़ था जो की एक पुलिस हवलदार थे। रजनीकांत का जन्म का नाम शिवाजीराव गायकवाड़ था जो उनके पिता ने महान छत्रपति शिवाजी राव के नाम पर रखा था। रजनीकांत को मिला के उनके चार भाई बहन हैं। जब रजनीकांत केवल नौ साल के थे तो उनकी मां का देहांत हो गया था।
प्राथमिक शिक्षा के बाद रजनीकांत का एडमिशन रामकिशन मिशन के एक मठ में करवाया गया जहां आध्यत्मिक ज्ञान मिलने के साथ साथ रजनीकांत वहां होने वाले आध्यत्मिक नाटकों में भी भाग लेने लगे। एक नाटक में रजनीकांत ने दुर्योधन की भूमिका अदा की जिसे देखकर मशहूर कवि डीआर बेंद्रे ने उनकी काफी तारीफ की और इस नाटक के बाद ही रजनीकांत ने सोच लिया था कि अब एक्टिंग ही करनी है और फिल्मों में नाम कमाना है।
मठ के बाद उनका दाखिला किसी आचार्य पाठशाला पब्लिक स्कूल में करवाया गया यहां भी वे स्कूल के नाटकों में हिस्सा लेते रहे। उनके परिवार की माली हालत कुछ अच्छी नहीं थी जिस कारण रजनीकांत पढ़ाई के साथ साथ काम भी करते रहे। उन्होंने सबसे पहले कुली का काम किया और परिवार का सहारा बने। फिर कारपेंटर और तो और बढ़ई का काम भी किया। 1973 में बैंगलौर ट्रांसपोर्ट में उन्हें कंडक्टर की नौकरी मिली यहां भी लोगों के बीच अपने खास स्टाइल में टिकट काटने के वजह से वह काफी लोकप्रिय रहे।
राज बहादुर जो कि रजनीकांत के साथ बैंगलौर ट्रांसपोर्ट में ड्राइवर थे, रजनीकांत के काफी अच्छे दोस्त थे और अभिनय में उनके साथी राज बहादुर ने ही रजनीकांत को मद्रास फिल्म स्कूल जॉइन करने के लिए प्रोत्साहित किया था और र्कोस का पूरा खर्चा भी उठाया था। इसी दौरन एक स्टेज शो के दौरन मशहूर निर्माता के. बालाचन्द्रन राव उनकी एंक्टिग से काफी प्रभावित हुए और रजनीकांत को तमिल सीखने के लिए कहा जो आगे चलकर रजनीकांत के लिए काफी मददगार साबित हुई।
के. बालाचन्द्रन राव ने ही रजनीकांत को पहला ब्रेक दिया और इस तरह रजनीकांत को 1975 में अपनी पहली फिल्म मिली अपूर्व रंगगल जिसमें रजनीकांत का छोटा सा रोल था। इस फिल्म के बाद रजनीकांत ने नेगेटिव रोल ही किये और सहायक अभिनेता के रोल ही उन्हें ज्यादा मिले। हीरो के तौर पर रजनीकांत की पहली फिल्म चिलकम्मा चेरियड़ी 1977 में आई जिसमें दर्शकों ने और फिल्म समीक्षकों नें रजनीकांत का काम काफी सराहा। 1978 में आई फिल्म भैरवी ने रजनीकांत के कॅरियर को एक अलग मोड़ दिया। यह फिल्म सुपरहिट रही। इसके बाद तो रजनीकांत की फिल्मों की लाइन लग गई।
कुछ फिल्में करने के बाद रजनीकांत नें फिल्म इंड्रस्ट्री छोड़ने का मन बना लिया था लेकिन फिल्मी दुनिया के लोगों के समझाने पर वे मान गये और बिल्ला फिल्म से वापसी की। ये फिल्म हिन्दी फिल्म डॉन की रीमेक थी जिसने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड दिये थे। 1983 में रजनीकांत ने हिन्दी फिल्मों का रुख किया और अभिताभ बच्चन और हेमा मालिनी के साथ अंधा कानून फिल्म की। इस फिल्म के बाद रजनीकांत ने हिन्दी सिनेमा में भी अपने पैर जमा लिए थे और कई हिट फिल्में दीं जैसे की आतंक ही आतंक, चालबाज, गिरफ्तार। 1991 में आई फिल्म हम में रजनीकांत ने एक पुलिस वाले की भूमिका अदा की।
2002 में रजनीकांत ने बाबा नाम से फिल्म बनाई जोकि फ्लाप रही लेकिन रजनीकांत की दरियादिली तो देखिए कि डिस्ट्रीब्यूटरों के नुक्सान को भरने के लिए उन्होंने खुद अपने पास से पैसे दिये, लेकिन इस नुकसान के बाद रजनीकांत रुके नहीं और चंद्रमुखी जैसी सुपरहिट फिल्म देकर साबित कर दिया की असली सुपरस्टार तो वही हैं। गौरतलब है कि चंद्रमुखी एक साथ कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में रिलीज हुई थी। फिर 2007 में रजनीकांत की मेगा ब्लाकबस्टर फिल्म रही शिवाजी, जो ना केवल भारत में ही बल्कि लंदन और साउथ अफ्रीका में भी जबरदस्त हिट रही। इस फिल्म में काम करने के लिए रजनीकांत को 26 करोड़ रुपए की फीस मिली थी जो कि एशिया में जैकी चेन के बाद मिलने वाली सबसे अधिक फीस है। 2010 में आई रोबघ्ॉट फिल्म हिन्दी तथा तमिल में रिलीज हुई और सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्म बनी। 2011 में उनकी तबीयत काफी खराब रही। यहां तक कि उनकी मौत की झूठी खबरें भी उड़ने लगीं लेकिन अब वे पूरी तरह से स्वस्थ हैं। 2016 में उनकी फिल्म आई कबाली जोकि जबरदस्त हिट रही। हाल फिलहाल वे रोबॉट 2.0 की शूटिंग में व्यस्त हैं।
रजनीकांत ने पटकथा लेखन भी किया और वह एक सफल प्रोड्यूसर भी हैं। उनकी सफलता और दीवनागी का ये आलम है कि उनकी फिल्में रिलीज होने से पहले ही कमाई करना शुरू कर देती हैं और टिकट खरीदने के लिए लोग अपना काम छोड़कर लाईनों में लग जाते हैं। रजनीकांत ने हर तरह के रोल किये और अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया। दर्शकों में रजनीकांत की फिल्मों में उनकी एंट्री को लेकर खासा क्रेज रहता है तभी तो फिल्म में उनकी एंट्री होते ही थियेटर में सारे दर्शक थलाईवा थलाईवा चिल्लाना शुरू कर देते हैं। थलाईवा का हिंदी में मतलब होता है बॉस।
रजनीकांत का अभिनय, एक्शन और डायलॉग बोलने का स्टाईल उन्हें सबसे अलग
बनाता है। रजनीकांत का हर स्टाईल निराला और गजब है फिर चाहे वो घूमा कर चश्मा लगाना हो या हवा में उछाल कर सिगरेट पीने का अंदाजः रजनीकांत ने 1981 में लता रंगाचारी से शादी की जो कि कॉलेज की तरफ से रजनीकांत का इंटरव्यू लेने आई थीं। उनकी दो बेटियां हैं ऐश्वर्या और सौंदर्या, ऐश्वर्या ने जहां प्रसिद्ध अभिनेता धनुष से शादी की तो दूसरी बेटी सौंदर्या फिल्म डायरेक्टर हैं।
उनकी बेटी सौंदर्या ने रजनीकांत को लेकर फिल्म कोचेडियान बनाई थी जो एक ऐनिमेशन फिल्म थी। इस फिल्म के बाद रजनीकांत ऐसे पहले अभिनेता बन गये हैं जिनकी फिल्म सिनेमा के चार अलग अलग फॉर्म में बनी हैं- ब्लैक एंड वाइट, कलर, मोशन पिक्चर और ऐनिमेशन। आज भी इस उम्र के इस पड़ाव पर अभिनय के लिए उनका जूनून युवावस्था जैसा ही है। वैसी ही शिद्दत से वे अपना काम कर रहे हैं और हीरो तक का रोल निभा रहे हैं।
रजनीकांत ऐसे पहले अभिनेता हैं जिनके ऊपर सीबीएससी बोर्ड की छठी कक्षा की पुस्तक में पाठ पढ़ने को मिलता है जिसका नाम है फ्रॉम बस कंडक्टर टू सुपरस्टार।
1984 में पहला फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
6 तमिलनाडु स्टेट फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं।
1989 में एमजीआर पुरस्कार।
महाराष्ट्र सरकार राज कपूर पुरस्कार से भी नवाज चुकी है।
2014 में 45वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में इंडियन फिल्म पर्सनेलिटी का सम्मान दिया जा चुका है।
एशिया वीक द्वारा सबसे प्रभावशाली दक्षिण एशिया का व्यक्ति घोषित किया गया।
2010 में फोर्ब्स इंडिया ने भारत का सबसे प्रभावशाली और प्रसिद्ध व्यक्ति बताया।
2000 में पद्न भूषण और 2016 में पद्म विभूषण से भी नवाजा गया।