सुनिता ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
गम कोई तो नुमाया है,जिसने आसमां को रूलाया है।
दिल परेशां,मश्किल में जाँ,जाने क्या बबंडर आया है।।
गली, मोहल्ले, खेत-खलियान, स्कूल-कॉलेज, खेल के मैदान सब विरान।
छोड सारी जद्दोजहद निज प्राण रक्षण हेतू छिपकर बैठा इंसान।।
मानव खडा डर की हद में चेहरे पर नकाब है।
अब चला पावनता की जद में कृत्य हुए बेनकाब है।।
कलुषित किया नदियों को, गौ माता का व्यापार किया।
जगजननी तो स्त्री है, बेटी को भ्रूण में ही मार दिया।।
सुखी, निरोग, भद्र कोई नही, विचार वसुधैव कुटुम्बकम् का भुलाया है।
प्रकृति जब-जब हुई असंतुलित, शास्त्रों ने ही मार्ग दिखाया है।।
निशब्द, निस्तब्ध, मानव कितना घबराया है।
जिंदगी खौफ़ज़दा, हर तरफ मौत का साया है।।
सहमा सा बुढापा आँखों में नमी भरकर बुदबुदाया है,
लगता है वो फिर से आया है ...........
लगता है वो मानवता को जगाने आया है।
साक्षी है इतिहास वो हर बार धर्म का पाठ पढाने आया है।
कुपित नटराज दुष्कृत्यों का सबक सिखाने आया है।
आओ शरण लें उस सृष्टा की, हर बार सृष्टी को जिसने बचाया है।
तन-मन शुद्धि का दिया सबब, आत्मचिंतन हेतु घर में बैठाया है।
साँसे कर दी पावन, प्रकृति का कुशलता से सन्नान कराया है।
खुल जायेंगे कपाट धर्मस्थलों के, नवरूप धर लीलाधर आया है ।
गॉव काम्बलू, तहसील करसोग, जिला मंण्डी हिमाचल प्रदेश
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