मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आप यकीन नहीं करेंगे। दुनियां के कुछ अन्य देशों का कुल बज़ट होता है, उतना खर्च तो भारत के नेता लोगों के समोसों के लिए निकलता है, फिर इस देश के आम जनमानस चाहें भूखा मरे, नंगा रहे, कोई फर्क नहीं पड़ता। आप आश्चर्य करेंगे, जितने लोग किसी छोटे-मोटे युद्ध में मरते हैं, उतने तो हमारे किसान आत्महत्या कर लेते हैं। हमारे यहाँ युवाशक्ति निठ्ठली घूम रही है और बूढ़े खूसट मंत्री जो ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहे, वे कोई रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, शिक्षा मंत्री बने बिस्तर पर पड़े-पड़े खांस रहे हैं।
हमें कोई देशभक्ति, स्वदेशी की शिक्षा कतई न दे। हम स्वदेशी व देशभक्ति के नाम पर गोबर जैसी चीज भी सोने जैसी मंहगी धातु की कीमत में खरीद लेते हैं। उदाहरण के तौर पर रामदेव के उत्पाद। दुनिया में किसानों को सबसे ज्यादा सब्सिडी देने वाला देश अमरीका है और किसानों का सबसे ज्यादा तेल निकालने वाला देश हमारा अपना भारत है।
जिस तरह स्वर्ग सब जाना चाहते हैं, पर मरना कोई नहीं चाहता। उसी तरह भ्रष्टाचार से सब पीडित हैं, पर भ्रष्टाचार सब कर रहे हैं। जिसकी जैसी औकात, उसी के अनुसार। अभी हाल ही में मैं फतेहाबाद तहसील कोर्ट में किसी काम से गया था। वहाँ कोर्ट का एक कर्मचारी लोगों से मांग-मांगकर चाय पीता, गुटखा खाता, सिगरेट पीता मैंने देखा। उसके बारे में पता लगाया तो मालुम पड़ा महाशय को पचास-साठ हजार प्रतिमाह मिलते हैं और ऊपरी कमाई सहित एक लाख से ऊपर महीना निकल जाता है। उसकी कमाई सुनकर मेरा पसीना छूट गया, लेकिन उसकी भेष-भूसा, रहन-सहन देखकर आप अनुमान नहीं लगा सकते कि यह हमारे देश का छोटा अम्बानी है।
इस देश की सरकारों से आम जनमानस की भलाई वाली नितियों के बारे में कार्य हमेशा कछुए वाली चाल में होता है। कमाल की बात यह है कि अभी हाल ही में बेमौसम बारिश और आंधी ओलों से काफी फसलें नष्ट हो गईं, तो किसानों के मुआवजे का ऐलान किया गया। अफवाह फैली कि फैलाई गई, जिन्होंने बैंकों से ऋण लिया है, वे ही किसान हैं, बाकी तो मुकेश अम्बानी के फूफा हैं। हालांकि बाद में सुधार कर लिया गया था, परन्तु इस अफवाह की वजह से बहुत से छोटे किसान सरकार से मुआवजा लेने से चूक गये। कुलमिलाकर हम आज जिन हालातों में जी रहे हैं, उन हालातों के जिम्मेवार हम स्वयं ही हैं |
ग्राम रिहावली, डाक तारौली,
फतेहाबाद, आगरा 283111
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