कुंवर आर.पी.सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
बर्बरीक एक ऐसा योद्धा था, जो एक ही बाण़ से महाभारत युद्ध खत्म कर सकता था। हिंडिम्बा और भीम का पुत्र घटोत्कक्ष अपने तीन साथियों सूर्यांक्ष, बालाख्व और महोदय के साथ प्रज्ञाज्योतिषपुर गया। उसने मुर की पुत्री मौर्वी को युद्ध में परास्त किया। फिर घटोत्कच उसे लेकर इंद्रप्रस्थ आया, जहाँ श्रीकृष्ण ने दोनों का विवाह करा दिया। उन दोनों का ही पुत्र था बर्बरीक। वह भीम का पौत्र था।
घटोत्कच् बर्बरीक को लेकर श्रीकृष्ण के पास द्वारका गया, जहाँ उन्होंने उसे शिक्षा दीक्षा दी। द्वारका के पास ही मही नदी समुद्र में गिरती थी। इस संगम को मही-सागर कहते थे, वहाँ नौ दुर्गायें रहती थी। सहृदय यानि बर्बरीक ने तीन वर्ष तक वन क्षेत्र में देविओं की सेवा की। वहां उसने दो दैत्यों रेपलेन्द्र और दुहद्रुहा का वध किया। बहुप्रभा नगरी में पलासी लोगों के भय से नागों को पाताल में रहना पड़ता था। उसने पलाशियों को मारा, इससे प्रसन्न होकर नागराज वासुकि ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया।
जुएं में सबकुछ हारने के बाद पांडव भटकते हुए उसी क्षेत्र में पहुँचे। वे चण्डिका देवी मन्दिर में रुके। बर्बरीक उन्हें नहीं पहचानता था और पांडव भी उसे नहीं पहचानते थे। जब भीम जल पीने तालाब पर गये तो वे कुण्ड में ही हाथपाँव धोने लगे। बर्बरीक ने उन्हें टोका-कुण्ड के बाहर हाथ पाँव धोने चाहिये। इस परदोनों में तू-तू, मैं-मैं हुई और दोनों लड़ पड़े। इस लड़ाई में भीम हार गये।
बर्बरीक भीम को समुद्र में फेंकने ही जा रहा था कि तभी वहाँ शिव प्रगट हुए। उन्होंने उसे बताया-ये तुम्हारे पितामह भीम हैं। तब दोनों का मिलन हुआ, लेकिन पाश्चाताप से दुःखी होकर बर्बरीक समुन्द्र में कूद गया। सिद्धाम्बिका और चारों दिशाओं की देवियों और रुद्र ने उसे समझाया कि यह भूल तुमने अन्जाने में की है। तुम चण्डिका के लिये अपनी बलि दोगे और चाण्डिल्य कहलाओगे। भीमसेन ने अपने पोते को प्यार से गले लगा लिया और ले जाकर अपने भाईयों से मिलवाया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ
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