रविता चौहान, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हमारे देश में अनेकों स्थानों में चिंता का विषय तभी से बन जाता है, जब एक लड़की जन्म लेती है। माँ बाप को उसकी चिंता तभी से हो जाती है, जब वह उसे पहली बार गोद में उठाते हैं। उसकी पढ़ाई से लेकर शादी तक की सभी चिन्ताएँ माता-पिता को उसी दिन से हो जाती है। कई स्थानों पर तो ख़ुशी पर मानों मातम छाया हो। वह है उसकी सुरक्षा से संबंधित, क्योंकि नारी चरित्र से बढ़कर एक स्त्री के लिए और कुछ नहीं। पारिवारिक वातवरण में लड़कियों को बचपन से ही लड़को से अलग रखा जाता है। यानि कैसे उठना, बेठना, चलना व पहनावा इत्यादि अनेकों बातें इसके विपरीत लड़के को बचपन से कम रोक टोक ही लगाई जाती है। यह स्थिति किसी एक घर की नहीं, बल्कि हमारे भारत देश के हर एक घर की है। सामान्यतः लड़को को परिवार का वातावरण अलग ही मिलता है। उनका रहन सहन इस तरीके का रखा जाता है कि वह बचपन से ही लड़की को कमजोर समझता है व उसकी इज्जत नहीं करता। हमारे घर परिवार लड़को को बचपन से ही उन्हें टोकता या डांटता नहीं है, जब वह पहली बार किसी लड़की पर हाथ उठाता है।
आख़िर लड़को को घर से यह कहकर क्यों नहीं भेजते कि लड़कियों, महिलाओं की इज्जत करें, बसों में जरूरतमंद महिलाओं की मदद करें, कोई गाली-गलौच न करें न और करने दें। सभी को दूरियां बरतने के लिए कहा जाता है, किन्तु किसी महिला के साथ कोई अन्याय या दुराचार हो रहा हो तो उसे रोकने के लिए या किसी को सूचित करने के लिए नहीं कहा जाता है। हमारे देश की महिलाओं ने भारत का सर गर्व से ऊंचा किया है। हम सभी इस बात से वाकिफ़ है आज किसी भी क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों से कम नहीं आंका जाता है। हर क्षेत्र में महिलाओं ने स्वयं को साबित किया है।
महिला दिवस के उपलक्ष में अनेकों संस्थाएं किसी न किसी विषय से संबंधित भारत को गर्व प्रदान कराने वाली महिलाओं को पुरस्कारों द्वारा सम्मानित करते हैं, जो महिलाओं के लिए वाकई बड़े गर्व कि बात है। महिला दिवस के उपलक्ष में हम सभी को यह भी अत्यंत आवश्यक है कि हम नारी रूप को समझे। पुरुष स्वयं में और नारियों में अंतर को समझें, उनका आदर करें और शपथ लें कि उनके साथ हो रहे किसी भी दुराचार में न तो शामिल होंगे न दुराचार होने देंगे।
मैं बात कर रहीं हूं, उन क्षेत्रों की जहां के लोगों की सोंच पिछड़ी हुई है। जहां बाल शोषण, कन्या भ्रूण हत्या, शिक्षा से दूर रखना, घरेलू हिंसा, बलात्कार, दहेज के लिए महिलाओं को पीड़ित करना, देह व्यापार इत्यादि घिनौने अपराध प्रशासन व कानून के नाक के नीचे हो रहे हैं। हमारे आज के युग की यह स्थिति है, किन्तु सत्य तो यही है। महिलाओं का विकास सामाजिक, आर्थिक व भौतिक स्तर तीनों स्तरों के साथ मानसिक स्तर पर भी होना अत्यंत आवश्यक है, ताकि वह स्वयं को कमजोर न समझें। सामाजिक विकास को देखा जाए तो महिलाओं का उनके अधिकारों के बारे में जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है कि उनकी सुरक्षा व सम्मान को बचाए रखने के लिए कौन से कानून एवं नियम है। उन्हें जागरूकता अभियान द्वारा समझाया जा सकता है।
बलात्कार व बाल यौन शोषण जैसे अनेकों मुद्दे हो जिसमें कानून व प्रशासन भी चुप्पी साधे हुए हैं। यदि आर्थिक विकास की बात है तो जो भी आपने कहा महिलाओं में कोई भी हुनर हो तो उनके लिए कोई कार्यक्रम आयोजित करवा, उनकी विभिन्न कलाओं की प्रदर्शनी लगाई जा सकती है तथा जहां तक आध्यात्मिक विकास की बात है एक नारी यदि शिक्षित है तो वह अपने साथ औरों को भी शिक्षित करने के साथ साथ अनेकों कार्य घर बेठे भी कर सकती है। हम सरकार की सहभागिता के साथ महिलाओं को शिक्षा प्रदान करवा सकते हैं। विभिन्न प्रकार के कोर्स जो सरकार करवा रही है, उससे महिलाओं को लाभान्वित करवा सकते हैं। समाज की यह दशा है कि कुछ हद तक ही महिलाओं का विकास हो रहा है, किंतु सभी को पूर्ण रूप से लाभ नहीं हो रहा है। सरकार के साथ मिलकर ऐसा कार्य हो जिसकी जानकारियां भारत के हर घर तक पहुंचे। इसके लिए निजी एवं सरकारी संस्थाओ के साथ प्रत्येक व्यक्ति को महिला हो या पुरुष मिलकर सुझाव व सामाधान साझे करने चाहिए तथा बुराइयों को रोकने के लिए मिलकर उसके ख़िलाफ़ खड़े होकर सामना करना चाहिए, ताकि समाज में हो रही इन बूराइयों को ख़त्म किया जा सके, क्योंकि महिलाओं के बिना घर व देश दोनों अधूरे हैं ।
पांवटा-साहिब जिला-सिरमौर, हिमाचल प्रदेश
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