कुर्मी जहाँ भी रहा कर्तव्यशील रहा


शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 


पूरे भारत में प्रभु समाज की वर्चस्ववादी सता को चुनौती देने का हौसला कुर्मियों में आरंभ से ही रहा है। चाहे वो शासक के वेशभूषा में हो या सैनिक के रूप में। कुर्मी जहाँ भी रहा कर्तव्यशील रहा।  वह कुर्मी ही था जिसने भीम राव आंबेडकर की विदेश में पढाई का खर्चा उठाया और वह भी कुर्मी ही था, जिसने प्रभु समाज को चुनौती देते हुए बाबा साहेब के गॉडफादर की भूमिका में पग-पग पर छत्रपति शाहू जी महाराज के रूप में खड़ा रहा। वो कुर्मी ही था जिसने बर्बर मुग़ल सल्तनत को चुनौती देते हुए हिंदवी स्वराज की स्थापना की। उसे छत्रपति शिवाजी महाराज कहते है। वो कुर्मी ही था ,जिसे भारत का विस्मार्क कहते है। यह लड़ाकापन कोई इतेफाक या अपवाद नहीं है। यह कुर्मी के रक्त में है। शायद इसी वजह से वर्ग विभेद की साजिश में सबसे अधिक कुर्मियों को उलझाया गया, क्योकि यह कभी भी सता में रहने का कौशल दिखा सकता है। आज आपसे बिहार के संदर्भ मैं कुछ तथ्यों की चर्चा कर रहा हूँ।



जो धनुर्धारी था, जो मगध साम्राज्य का रक्षक था। नन्द वंश से लेकर मौर्य वंश तक मगध की ताकत की नींव था। वो मगध साम्राज्य के पतन के साथ ही बार-बार होने वाले हमलों की वजह से राजधानी पाटलिपुत्र से उतर दिशा में पीछे की ओर होता गया। वो नेपाल की तराई से लेकर बंगाल तक फ़ैल गया, उसे धानुक कुर्मी कहते है। वक्त की मार की वजह से पेशा बदल गया है, लेकिन हल्के में मत लीजिये। उसकी रगों में प्रभु श्रीराम पुत्र लव का खुन दौड़ता है। प्रभु समाज द्वारा कुर्मियों को इसी वजह से विभिन्न वर्गों में बांटने की कोशिश की गई है, क्योकि यह ताकतवर रहा तो हमेशा छत्रपति बना रहेगा।



इस समाज के दिमाग में पिछड़ा-शुद्र होने का भ्रम डाल दिया गया। इन्हें बता दिया गया कि तुम्हारा पेशा सिर्फ खेती करना है, ताकि सता की तरफ देखना भी भूल जाओ। जो इस सोच को बदलना चाहते है, वो अपने लोगों के दिमाग में डाले कि तुम्हारा काम शासन करना है तुम्हारा काम अदालत में बहस करना है। तुम्हारा काम बीएचयू, जेएनयू और डीयू में पढ़ना है। तुम्हारा काम अखबारों में लिखना है। तुम्हारा काम बिजनेस करना है। तुम्हारा काम सड़क की ठेकेदारी करना है।



मध्यकालीन भारत में मगध की शासकीय नीति को लागू करने के लिए सचिवों की नियुक्ति होती थी, जिसे अमात्य कहा जाता था। वो अमात्य कौन था। वो अमात्य चतुर होता था। वो अमात्य राजनीति में निपुण होता था। उसमे दिलेरी थी। वो तलवार की धारों का, सता के इक़बाल का नियंत्रक था। वो शक्तिशाली होता था। वो लड़ाका होता था। वह अमात्य ही आज का अमात कुर्मी है। कुर्मी संगठनों और कुर्मी राजनीति के मठाधीशों अपने इतिहास से प्रेरणा लो। अपने समाज के हित की बात  अपने साहित्य में खुद लिखों।



सैंथवार कुर्मी कौन था, जिसका जड़ गोरखपुर क्षेत्र तक जाता है?  सैनिक था सैनिक। शाहाबाद के बुजुर्गों के अनुसार सैंथवारों का लड़ाकापन 18वीं शताब्दी तक कायम था। इनकी बसावट राजपूत गढ़ों के आसपास होना बुजुर्गो की बात को तस्दीक करता है। उपनाम चौधरी संकेत देता है कि कभी इलाके में इनकी चौधराहट रही होगी। बदलते समय के साथ इनकी माली हालत खराब हो गयी, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के दौरान तक इनके पास जमीन-जायदाद काफी था, लेकिन शिक्षा का अभाव भी था।



समस्वार कुर्मी कौन है? जो घोड़े पर चढ़ कर शासन की हनक बरक़रार रखता था। उसे समस्वार कहा जाता था। ये उदाहरण है जो साबित करते है कि हम सिर्फ खेती ही नहीं करते है। हम तलवार भी चलाते है। कलम भी चलाते है। हल भी चलाते है। हाँ! हम कुर्मी है, हम कुर्मी ही कहलाते है, लेकिन आज स्थिति क्या है? हम पढ़ने में पीछे होते जा रहे है। लड़ना तो भूल ही गये है। आज जरुरत है कि अपनी क्षमता के अनुसार समाज का हर एक व्यक्ति अपने बच्चो को देश-विदेश के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित करे। दिमाग में भरे गोबर को निकालना होगा। आँखे खोलिये आँखे। दुनिया में राजनीतिक बदलाव से सामाजिक बदलाव करने का इतिहास नहीं रहा है। किसी को नेता बनाने से बेहतर है, अपने लोगों को बड़ा अधिवक्ता बनाये। बेहतर पत्रकार बनाये। यदि कुछ न करे तो उसे ठेकेदार बनाये। गाँव की पॉलिटिक्स निकम्मों को करने दे। 



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