(कुंवर आर.पी.सिंह), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
काशी के राजा ब्रहृमदत्त का बड़ा पुत्र विरक्त स्वभाव का था। पिता के स्वर्गारोहण के बाद उसने अपने छोटे भाई को राजा नियुक्त किया और स्वयं वन को प्रस्थान कर गया। कुछ वर्ष बाद उसके मन में राज करने की इच्छा जागृति हुई। जब यह जानकारी छोटे भाई राजा को मालूम हुई ,तो वह बड़े भाई के पास पहुँचा और आदर सहित उन्हें लाकर राजगद्दी सौंप दी।
बड़े भाई मेे राजा बनते ही राज्य विस्तार की इच्छा बलवान हुई। उसने कई राज्यों पर आक्रमण कर, उन्हें जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।
इन्द्र देव ने जब देखा कि एक धर्मपराण व्यक्ति माया के जाल में फँस गया है तो उन्होंने उसे सही रास्ते पर लाने का निर्णय किया। उन्होंने एक दिन ब्रहृमचारी साधू के वेश में पहुँचकर राजा से कहा, मैं ऐसे तीन राज्यों की यात्रा करके आया हूँ ,जहाँ अपार स्वर्ण और रत्नों के भण्डार हैं। यदि वे राज्य आपके हाथ में आ जाये तो आप अपा,अथाह सम्पत्ति के स्वामी हो जायेंगे। यह कहकर इन्द्र गायब हो गये। राजा ने राज्यों के नाम दिशा, पूँछने के लिए इधर उधर देखा,....साधू गायब। उसने सिपाहियों को उसे ढूँढकर लाने का आदेश दिया, लेकिन कुछ पता ना चला। राजा की नींद उड़ गई।
एक दिन बोधिसत्व भिक्षा के लिये राजभवन पहुँचे। राजा से मिलकर वह तुरन्त समझ गये कि लालसा ने उसे रोगी बना दिया है। उन्होंने उपदेश देते हुए राजा से कहा,,राजन !आपको शारीरिक नहीं मानसिक रोग है, धन की लालसा ने आपके शरीर को बीमारियों का घर बना दिया है। यह सुन राजा ने तुरन्त अपना राजपाट छोटे भाई को त्यागकर जीवन साधना में लगा दिया। उसी दिन से वह स्वस्थ होते गये और ईश्वर में मगन हो गये।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ
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