नव वर्ष


(उमा ठाकुर), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


नव वर्ष, नव भोर, नव आगाज
नव डगर, नव सफर, नव मंजिल
नव कलैण्डर, नव डायरी, नव सृजन
हर दिन, हर पल हो कुछ खास
न हों गमों की काली घटाएं
बस भोर का उजयारा फैले
मिटे मन के द्वेष
घर-आंगन खुशियां महकें
न सरहद की दीवारें
न हो मजहब का बैर
मैं और मेरा का सीमित दायरा छोड़
देशहित बने सबकी पहचान
फटी जिल्द सी जिन्दगी
न फुटपाथ पर ठिठुरे
न फिर कोई कोख उजड़े
न निर्भया, गुुडिया की करूण पुकार
झकझोर दे मानवीय संवेदनाओं को
कंकरीट के जंगलों में
जज्बात कुछ ऐसे निखरें
कि नव वर्ष नव संकल्प बने
फेसबुक व्हाट्सएप की दुनिया से निकल
कुछ पल रिश्तों को थामें
छू लें गांव की सूनी मुंडेर
समेट लें आंचल में बचपन की यादें
वो मां की लोरी, गांव की मीठी बोली
बची रहे लोक संस्कृति, लोक जीवन के रंग
उससे भी परे बची रहे आत्मीयता
आने वाली कई पीढ़ियों तक

आयुष साहित्य सदन
पंथाघाटी शिमला-1


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