छत्रप्रभाकरः (14) ................3-कूर्मी संज्ञित क्षत्रियों का वर्णन


गतांक से आगे.....
जिस कूर्मी समुदाय की वर्तमान कालिक जनसंख्या अधिक नहीं तो भारतवर्ष की किसी प्राचीनतम जाति की जनसंख्या से कम भी नहीं है और जिसमें उत्कृष्टता व शूरतादि भेद 1400 से अधिक वर्तमान हैं, उसका अस्तित्व निस्संदेह अति प्राचीन काल से है। इसके अतिरिक्त पुलिंग कूर्मी शब्द का प्रयोग वेद में होना अर्थात उसका वैदिक शब्द होना इस बात को सिद्ध करता है कि उक्त समुदाय उन पुरूषों का वंशधर है, जो सृष्टि के आदि में अथवा वैदिक समय में थे।



मानव धर्म शास्त्र बतलाता है कि वेद शब्दों का प्रयोग उन्हीं की संज्ञा में किया गया था, जो सृष्टि के आरम्भ में वर्तमान थे और ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र इन तीन वर्णों मे से किसी वर्ण में उक्त समुदाय की गणना किसी आर्ष या प्राचीन ग्रन्थ में न होना, उसको उक्त तीनों वर्णों से पृथक करता है। अब रहा यह कि उक्त समुदाय जैसा अपने आपको मानता है, क्षत्रिय वर्ण है, तद् विषय में प्रमाण रूप मुख्य बाते ये हैं-
(क्रमशः)


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