उधेड़बुन भीष्म की

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
काश! मैं चाहता तो
नरसंहार रोक देता
बाहुबली होकर चुप रहा
चाहता उसे ठोक देता
लेकिन राजधर्म मे
ऐसा फंसा
तीर कमान मे ही रखा 
मैंने क्यों नहीं कसा? 
क्या धर्म इतना निष्ठुर है ? 
क्या भीष्म बेकसूर है? 
क्या विधि ही तकदीर है? 
क्या निष्क्रिय सारे तीर है? 
मैं सरसैया पर सो गया
पश्चात मेरा हो गया 
यह मौन का इंतकाम है
चुपी का परिणाम है
स्थिति को तुम मोड़ दो
मटकी को तुम फोङ दो
चुपी को तुम तोड़ दो
गलती को मरोड़ दो
इतिहास गवाह होगा 
बचालो समाज स्वाह होगा
तुम्हारी गाथा रहेगी
जब तक पेड़ पर शाखा रहेगी
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

Post a Comment

Previous Post Next Post