मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
नज़र अपनी अपनी
डगर अपनी अपनी
लेकिन फर्क है
दृष्टि का
कहीं गरीबी कहीं अमीरी
विधान है सृष्टि का
कहीं सुखा कहीं बाढ
दुखों मे ंंअंतर है
कहीं भिषण गर्मी, ठंड
मौसम का मंत्र है
कहीं तीन बेटे, बेटियां
कहीं कोख खाली है
उपवन उजङ रहा है
रेगी मे घुमते माली है
क्यों कोसते किस्मत को
क्यों खो रहे हो अस्मत
कहीं घुमते है प्यासे
वो पीकर है मदमस्त
घटिया है वो सोच से
दुखी है वो मोच से
वो चार दिन से भूखा
नहीं मांगता संकोच से
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम