डाँ. राजीव डोगरा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मिथ्या फड़फड़ाहट
क्यों?
अब टूट गया
तुम तो कहते थे
सब कुछ मैं ही हूं।
सब चलता है
मैं न चाहूं तो
यहां पत्ता भी न हिलता है
अब भी कोई
पूछता मांगता है?
शायद नहीं
क्योंकि जिद्दी व्यक्तित्व
हर किसी को रास नहीं आता है।
चली गई न सत्ता
आहत कर रहे है न अपने
क्या अब भी बचा है
अहम का वहम ?
अहम का वहम
मेरे इशारे पर ही
क्या ?
बीत गया न वक्त
क्यों?
अब टूट गया
तुम तो कहते थे
सब कुछ मैं ही हूं।
सब चलता है
मैं न चाहूं तो
यहां पत्ता भी न हिलता है
अब भी कोई
पूछता मांगता है?
शायद नहीं
क्योंकि जिद्दी व्यक्तित्व
हर किसी को रास नहीं आता है।
चली गई न सत्ता
आहत कर रहे है न अपने
क्या अब भी बचा है
अहम का वहम ?
अहम का वहम
मेरे इशारे पर ही
क्या ?
बीत गया न वक्त
युवा कवि व लेखक गांव जनयानकड़ (कांगड़ा) हिमाचल