संविधान में किसान को क्या मिला

अलप भाई पटेल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

आजादी के लगभग 78 वर्ष बाद भी आज देश का किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ रहा है, आंदोलन कर रहा है, पर आज भी देश का अन्नदाता कहें जाने वाले किसान सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ रहे हैं, जबकि होना यह चाहिए कि देश के अन्नदाता को लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए।’

अक्सर यह कहा जाता है कि संविधान में सबके लिए कुछ ना कुछ है। संविधान हमें बोलने की आजादी देता है, संविधान हमें पढ़ने की आजादी देता है, संविधान हमें लिखने की आजादी देता है, संविधान बाल मजदूरी को प्रतिबंधित करता है। तो संविधान में देश के अन्नदाता और अन्नदाता के खास सहयोगी अन्नदाता के कंधा से कंधा मिलाकर चलने वाले मजदूर के लिए क्या है।

ब्रिटिश शासन के सत्ता हस्तांतरण के बाद जब भारतीय संविधान सभा का निर्माण हुआ तो उस संविधान सभा में 1931 की जनगणना के हिसाब से सदस्य बनाए गए और सदस्य भी कोई आम नागरिक या किसान मजदूर नहीं बना, बल्कि जो उस समय टेक्स पेयर था, राजा रजवाड़ा था या राजा रजवाड़ों का प्रतिनिधि था या जिसके ऊपर अंग्रेजों की कृपा थी, वही संविधान सभा में सदस्य बनें और संविधान का निर्माण किया।

संविधान के निर्माण के बाद यह दुष्प्रचार किया गया कि यह अनुच्छेद इस वर्ग को प्रोटेक्ट करता है तो यह अनुच्छेद यह पावर देता है। कुछ अनुच्छेद बोलने की तकत देता है तो कुछ अनुच्छेद लिखने की ताकत देता है, पर संविधान निर्माताओं ने देश के अन्नदाता और मजदूर के लिए कोई भी अनुच्छेद नहीं बनाया, जबकि सत्ता हस्तांतरण के बाद लगभग 80-85 फीसदी आबादी खेती किसानी और मजदूरी पर निर्भर थी।

अनुच्छेद 48 कृषि और पशुपालन मे यह लिखा है कि राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टतः गायों और बच्चों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परीक्षण और सुधार के लिए और उसके बध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा। अनुच्छेद 48 सीधे-सीधे पूंजिपतियों को लाभ पहुंचाने वाला अनुच्छेद लगता है। इस अनुच्छेद में भी देश के अन्नदाता और देश की जनता को ठगने का प्रयास किया गया है। होना यह चाहिए था कि देश के अन्नदाता और मजदूर के लिए मौलिक अधिकारों में लाभ की बात करना।

क्या संविधान सभा और ड्राफ्टिंग कमेटी के लोग देश की परिस्थितियों से अनभिज्ञ थे, जो देश के अन्नदाता के लिए किसी भी अनुच्छेद में कोई जिक्र नहीं किया। क्या संविधान सभा और ड्राफ्टिंग कमेटी के लोग सिर्फ पूंजिपतियों और नेताओं के हित में संविधान बनाए, जिससे पूंजिपती देश को लूट सके और बतोलबाज नेता इस लूट का हिस्सा बना रहे। बोलने की आजादी नेताओं को चाहिए ना कि किसानों को, किसान तो शांति पुर्वक अपनी खेती किसानी कर रहा था, उसे जरूरत थी तो सिर्फ लाभकारी मूल्यों की और अच्छे बीजों की, पर संविधान सभा और ड्राफ्टिंग कमेटी ने किसान को लाभकारी मूल्य तो छोड़िए, अच्छे बीज भी दिलवाने की व्यवस्था नहीं कर सका।

देश के अन्नदाता को लिखने पढ़ने की आजादी तो चाहिए ही साथ में उसके फसलों का लागत मूल्य निकाल कर लाभकारी मूल्य चाहिए था, पर संविधान निर्माताओं को यह समझ नहीं थी। देश की 80-85 फीसदी आबादी के लिए एक शब्द भी नहीं लिखा गया, जबकि देश जब-जब विषम परिस्थितियों में रहा है, तब-तब इसी खेती किसानी ने देश की स्थिति को संभाला है और सत्ता हस्तांतरण से लेकर आज तक देश की स्थिति को संभाल रहा है।

ना ही तब संविधान निर्माताओं ने इस पर ध्यान दिया और ना ही संविधान में संशोधन कर्ताओं ने ध्यान दिया कि किसान वर्ग के लिए भी कुछ लिख दिया जाए या कुछ दे दिया जाए। देश की इतनी बड़ी आबादी को दरकिनार कर के संविधान निर्माता आखिर क्या करना चाह रहे थे? किसके हित में संविधान बना रहे थे? देश के अन्नदाता और मजदूर के लिए कोई अनुच्छेद न बना कर संविधान निर्माताओं ने देश को आर्थिक रुप से कमजोर करने का कार्य किया है।

एडवोकेट इलाहाबाद हाईकोर्ट उत्तर प्रदेश

Post a Comment

Previous Post Next Post