मदन सुमित्रा सिंघल, शिलचर। सम्मिलित लोकमंच सिलचर द्वारा सोमवार को सिलचर पार्क रोड स्थित संगीत विद्यालय सभागार में अंतर्राष्ट्रीय धमेल दिवस मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और धमेल नृत्य के जनक राधारमण दत्ता के चित्र पर पुष्प अर्पित करने के साथ हुई। संगठन के अध्यक्ष डॉ. अनूप कुमार रॉय के निजी कार्य से सिलचर से बाहर होने के कारण बैठक की अध्यक्षता संगठन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुप्रदीप दत्तराय ने की। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में सिलचर राधामाधव महाविद्यालय, सिलचर के बंगाली विभाग के प्रोफेसर सूर्यसेन देव उपस्थित थे। उन्होंने अपना भाषण देते हुए कहा कि धमैल एक पारंपरिक बंगाली लोक नृत्य-गीत है। वैसे तो धमैल का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन बाउल कवि राधारमण दत्त को धमैल का जनक या रचयिता कहा जाता है। उन्होंने वैष्णव सहजीय साधना में लीन रहते हुए हजारों गीतों की रचना की। उनके भक्तों ने उन्हें सुनकर याद किया और लिखा।
उनके सभी गीतों को एकत्र करना अभी तक संभव नहीं हो पाया है। उन्हीं के माध्यम से धमैल ने श्रीहट्टा से आगे बढ़कर आज त्रिपुरा से लेकर असम तक लोकप्रियता हासिल की है। विशेषज्ञों के अनुसार धमैल शब्द धमाली या धूमाली आदि शब्दों से बना है। फिर, कुछ के अनुसार धमैल शब्द बंधमाली शब्द से बना है। बंगाली शब्द बंधमाली का अर्थ रंग-तमाशा होता है। धमाली शब्द का उल्लेख विभिन्न मध्यकालीन साहित्य में मिलता है। श्रीकृष्ण कीर्तन में धमाली शब्द का उल्लेख कुल 14 बार मिलता है। संजय की महाभारत, दौलत काजी की लोरचंदानी और सतीमना, सोनागाजी की सैफुलमुलुक बदीउज्जमां और मुहम्मद कबीर की मधुमालती में धमाली शब्द का उल्लेख है। धमाली हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में समान रूप से लोकप्रिय है। धमाली केवल महिलाओं का नृत्य नहीं है। इसमें पुरुष भी भाग लेते हैं। धमाली बांग्लादेश, असम, त्रिपुरा, उत्तर बंगाल और वर्तमान में पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय है। सूर्य सेन ने टिप्पणी की कि कुल मिलाकर धमाली बंगालियों का राष्ट्रीय नृत्य माना जाने योग्य है। उन्होंने टिप्पणी की कि धमाली को और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में धमाली पर कार्यशालाओं के आयोजन की आवश्यकता है।
इस बीच, प्रख्यात कवि और लेखिका अंजू एंडो ने राधारमण दत्त के जीवन से जुड़े विभिन्न तथ्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि राधारमण दत्त पर जितना अभ्यास या शोध होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ। यह खेद का विषय है। उन्होंने असंख्य गीतों की रचना की है। उन सभी को अभी तक एकत्र करना संभव नहीं हो पाया है। सिलचर संगीत विद्यालय की प्राचार्य नंदिनी चक्रवर्ती ने कहा कि धमैल बंगालियों की जान है। जब धमैल आज की तरह प्रचलित नहीं था, तब हम धमैल का अभ्यास करते थे। धमैल का सही तरीके से अभ्यास किया जाना चाहिए। अगर हम आधुनिकता लाकर इसे विकृत करेंगे, तो धमैल की परंपरा नष्ट हो जाएगी, उन्होंने टिप्पणी की। बैठक की शुरुआत में संगठन के महासचिव भास्कर दास ने स्वागत भाषण दिया। अन्य लोगों के अलावा, भाजपा कछार जिला समिति के पूर्व अध्यक्ष बिमलेंदु रॉय, दैनिक जगशंख पत्रिका समूह के प्रशासनिक निदेशक नीलाक्ष चौधरी आदि ने बात रखी।
कार्यक्रम में मनमोहक धमैल नृत्य प्रस्तुत किया गया। संगीत शांतिकुमार भट्टाचार्य, मंगला नाथ और सम्मिलित लोकमंच के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किया गया। आज के कार्यक्रम का संचालन संगठन के प्रचार सचिव कमलेश दास और कोषाध्यक्ष झिमली नाथ ने किया। कार्यक्रम को सुंदर बनाने में सांस्कृतिक सचिव कनाईलाल दास, उपाध्यक्ष गौतम सिन्हा, गौरीशंकर नाथ, वरिष्ठ सदस्य दीपक नाथ, अंकिता भट्टाचार्य व अन्य ने अग्रणी भूमिका निभाई।
कार्यक्रम के अंतिम भाग में कछार के अतिरिक्त जिला आयुक्त युवराज बरठाकुर के आकस्मिक निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए एक मिनट का मौन रखा गया। उल्लेखनीय है कि इस दिन लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार, विस्तार और संरक्षण के लिए हैलाकांडी के मितालिज समूह ने सम्मिलित लोकमंच को पुरस्कार प्रदान किया।