डाॅ.अंकुर प्रकाश गुप्ता, खतौली। उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर के कस्बा खतौली में स्थित भूड़ देहात क्षेत्र का एक पुराना शिव मंदिर, जिसे स्थानीय लोग नागेश्वर मंदिर के नाम से जानते हैं, पिछले 9 से 10 दशकों से क्षेत्र के लगभग 5 से 7000 हिंदू सनातनी लोगों की आस्था का केंद्र रहा है। परंतु आज यह मंदिर उपेक्षा का शिकार बन चुका है। जन्माष्टमी जैसे पवित्र पर्व के अवसर पर, जब देशभर के छोटे-बड़े मंदिरों को सजाया जाता है, भक्तगण भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं, वहीं नागेश्वर मंदिर एकदम सूनसान और बिना किसी सजावट के नजर आता है।
इस प्राचीन शिवालय की स्थिति देखकर हर भक्त का मन व्यथित हो जाता है। मंदिर की दीवारें दरक रही हैं, छत से पानी टपकता है और फर्श पर काई जमी हुई है। कभी यहां कीर्तन और भजन की गूंज सुनाई देती थी, आज वहां केवल सन्नाटा पसरा हुआ है। मंदिर के हालात इतने खराब हैं कि यहां न तो कोई कमेटी है, न ही कोई सेवक जो इसकी देखभाल कर सके। यहां तक कि जन्माष्टमी जैसे महत्वपूर्ण पर्व पर भी कोई सजावट नहीं होती, जिससे मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता पर प्रश्नचिह्न लगता है।मंदिर में पिछले 23-24 वर्षों से सेवा दे रहे पंडित जी, अपनी सीमित संसाधनों के साथ जो कुछ कर सकते हैं, वही करते हैं। उन्होंने बताया, "हमारी क्षमता से जितना होता है, उतना ही हम कर पाते हैं। मंदिर की देखभाल और पूजा-अर्चना के लिए कोई नियमित व्यवस्था नहीं है।" पंडित जी की आंखों में निराशा झलकती है, जब वे मंदिर की जर्जर स्थिति का जिक्र करते हैं। उनकी बातों से साफ जाहिर होता है कि मंदिर की दुर्दशा के लिए न केवल स्थानीय प्रशासन, बल्कि समाज भी उतना ही जिम्मेदार है।इस क्षेत्र में कई हिंदू संगठन सक्रिय हैं, विशेष रूप से विश्व हिंदू परिषद, जो हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना दावा करता है। परंतु इस प्राचीन शिवालय की उपेक्षा पर सब मौन हैं। संगठन के सदस्य भी इस मंदिर की स्थिति के प्रति उदासीन नजर आते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह मंदिर क्षेत्र के हिंदू समाज के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
यह देखना दुखद है कि जिस मंदिर में कभी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था, आज वहां केवल पंडित जी की धीमी आवाज में मंत्रोच्चार सुनाई देता है।स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस मंदिर की देखभाल के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है। "यह हमारी धरोहर है, हमें ही इसे बचाना होगा," एक बुजुर्ग महिला कहती हैं, जिनकी आंखों में मंदिर की पुरानी यादें तैर रही हैं। उनका कहना है कि अगर हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो इस मंदिर को फिर से संवार सकते हैं।यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह हमारे अतीत का, हमारी संस्कृति का प्रतीक है। अगर हम इसे नहीं बचा सके, तो हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को खो देंगे। जन्माष्टमी जैसे पर्व पर, जब हर जगह खुशी और उल्लास का माहौल होता है, ऐसे में इस प्राचीन शिवालय की उपेक्षा हमारे समाज के लिए एक चेतावनी है। यह हमें याद दिलाता है कि अगर हमने समय रहते अपने धरोहरों की रक्षा नहीं की, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए हम केवल खंडहर छोड़ जाएंगे।यह कहानी केवल नागेश्वर मंदिर की नहीं, बल्कि उन सभी धरोहरों की है, जिन्हें हमारे ध्यान और देखभाल की जरूरत है। यह समय है कि हम जागरूक हों और अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों की रक्षा के लिए आगे बढ़ें। ताकि आने वाली पीढ़ियों को हम एक समृद्ध और गौरवशाली विरासत सौंप सकें।