श्री रूकमणी कला क्षेत्र का संस्कृत अधिवर्ष उत्सव का उद्घाटन

मदन सुमित्रा सिंघल, शिलचर। श्री कृष्ण रुक्मिणी कला क्षेत्र द्वारा आयोजित एक वर्ष तक चलने वाले प्रथम संस्कृत अंतरराष्ट्रीय अधिवर्ष उत्सव 2024-25 का उद्घाटन दिनांक 12 मे 2024 को कछाड़ जिले के दक्षिण बेकीरपार में स्थित सन् 1841 में स्थापित शिक्षा ठाकुर राधा गोविन्द सेवा आश्रम में किया गया। वर्षोत्सव के  उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता असम विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के आचार्य एवं संस्कृत भारती दक्षिण-असमप्रान्त के  प्रान्तप्रचारप्रमुख डॉ. गोविन्द शर्मा थे। 

अपने उद्बोधन में डॉ. गोविन्द शर्मा ने कला-क्षेत्र द्वारा संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए किये जा रहे कार्यों एवं प्रयासों की प्रशंसा की, वर्षोत्सव के उद्देश्य का विस्तृत विवेचन किया। साथ ही आश्वासन दिया कि संस्कृतभाषा के लिए किये जा रहे कार्यों में असम विश्वविद्यालय एवं संस्कृत-भारती दोनों का ही सम्पूर्ण सहयोग मिलेगा। स्थानीय क्षेत्र के सभी निवासी संस्कृत समझ सकें इसका प्रयास करना चाहिए। भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल स्त्रोत संस्कृत है, अतः सभी भारतवासियों को संस्कृत का अध्ययन करना ही चाहिए। संस्कृत भाषा के सहयोग से स्थानीय भाषाओं का भी विकास संभव है, लुप्तप्राय बहुत सी भाषाएं संस्कृत भाषा के सहारे पुनर्जीवित हो सकती है।
श्री कृष्ण रुक्मिणी कला क्षेत्र की अध्यक्ष लेखक विधान सिंह ने अपने संबोधन में बताया कि भारत के राष्ट्रपति को लिखे एक पत्र द्वारा मांग की कि भारत की प्रत्येक जिलों में सहकारी राजकीय भाषा के रूप में संस्कृत को मान्यता दी जाए। एवं देशभर में समग्र ग्राम पंचायत स्तर तक संस्कृत को मातृभाषा में पढ़ने की व्यवस्था हेतु विद्यालयों का निर्माण किया जाना चाहिए। इस पत्र को केंद्रीय गृह-सचिव एवं असम सरकार को कार्यान्वयन  हेतु राष्ट्रपति द्वारा अग्रेषित भी किया गया। एतदर्थ एक वर्षात्मक संस्कृत उत्सव प्रत्येक लीप वर्ष में मानने का निर्णय अक्षय तृतीया के दिन लिया गया। संस्कृत उत्सव के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं रंगाली बिहू सम्मेलन का आयोजन भी किया गया। सत्र के आरम्भ में स्वस्ति वाचन प्रकाश सिंहा ने किया। प. नील माधब सिंह, दिलीप कुमार सिंह, गोपाल सिन्हा, अमृता सिन्हा, शर्मिला सिन्हा विशिष्ट-अथिति के रूप में सत्र में उपस्थित थे। प. हरिकान्त सिंहा ने धन्यवाद ज्ञापन किया गया। राष्ट्र गान के साथ सत्र का समापन किया गया।

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