मुख्य यजमान बनाम पगड़ीधारी ( हास्य व्यंग्य)
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
धार्मिक कार्यक्रम में एक रोडमैप तैयार करके आयोजन समिति धन संग्रह के लिए अनेक यजमान तथा एक मुख्य यजमान आर्थिक दृष्टि से  बनाती है जो अधिक धन देगा वो मुख्य यजमान फिर विशेष यजमान कम देने वाले साधारण यजमान जो फोरी तोर एवं परंपरागत तो ठीक ही है लेकिन धन के आधार पर मैरिट बनाकर कोई ईश्वरीय काम यज्ञ हवन पूजा पाठ कराना उचित है?? लेकिन हो रहा है। सर्वाधिकार मुख्य यजमान के पास होंगे तो उनका आसन्न भी अलग होगा।  बाकी लोग दर्शक बनकर रह जाते हैं इसलिए ऐसे आयोजनों में लोग कम आते हैं। मुख्य यजमान के गुणों का बखान ऐसे किया जाता है कि विज्ञापन करने वाले कलाकार हो।  आयोजक एवं कथाकार इसलिए खुश है कि येनकेन काम तो बन गया तो मुख्य यजमान भी निश्चित रूप से खुश होना ही है क्योंकि चंदा देने के बदले वो सब मिल गया जो आज तक संभव ही नहीं था। 
सिर पर पगङी अथवा साफा निश्चय ही संपन्नता की निशानी है। पूरा परिवार वाहवाही बटोरने में मशगूल है। चिकोरी मल लखपति था ।  ब्याज का काम करता था लेकिन उसे कोई नहीं पुछता था । मूंह पर झुर्रियाँ पङ गयी गर्दन टेढ़ी हो गई सिर भी उम्र के हिसाब से सिकुड़ गया लेकिन मुख्य यजमान बनाकर तैयार किया तो पगङी नाप की नहीं मिली तो साफा बनाकर पहनाया मंच पर लाया गया तो लालाजी दानवीर ना क्या क्या कहकर आलीशान कुर्सी पर बिठाया गया। पहले तो चिकोरी मल खुशी से पागल हो गया लेकिन जब हद पार कर गयी तो साफा रखकर बोला कि मैं चला मेरी जगह इस साफे के गुणगान करना। 
आयोजक बोला ताउजी आपको तो रहना ही पङेगा सात दिन पूजा आरती हवन करवाना है तो चिकोरी बोला इतना समय नहीं है मेरे पास। नहीं बनाना है तो रूपये लौटा दो।  समय  एवं स्थिति की नजाकत समझकर कथाकार बोला कोई बात नहीं ताउजी आपका प्रतिनिधि अब यह साफा ही रहेगा। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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