स्वादिष्ट व्यंजन गरीबों को खिलायें वीआईपी भोज में कटौती करें
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
यह कटू सत्य है कि लोग भजन में कम भोजन में अधिक आते हैं वैसे ही कोई धार्मिक सामाजिक विवाह शादी की पार्टी करें तो विशेष आमंत्रित वीआईपी एवं आजकल ग्रुपों में देखकर भोजन के समय काफी भीड़ होती है लेकिन गायक, दुल्हे दुल्हन के पास सिर्फ फोटो खिंचवाने अथवा उपहार देने अवश्य जाते हैं लेकिन उनका उद्देश्य सिर्फ उपहार देना तथा भोजन ग्रहण करना होता है जो कहीं भी अनूचित नहीं है। समय देकर उपस्थित हो जाना भी एक सामाजिकता एवं नैतिकता का विषय है, लेकिन भंडारा अथवा महाप्रसाद जो बिना आमंत्रित अथवा राहगिरों के लिए लगाया जाता है उसमें अमुमन खिचड़ी अथवा पुङी शब्जी होती है कभी कभी पुङी बनाने के लिए काफी परिश्रम समय एवं महंगा पङता है तो खीर एवं खिचड़ी का एक एक चम्मच प्रसाद दिया जाता है। जो अपर्याप्त जरूर होता है लेकिन वो भोजन नहीं सिर्फ प्रसाद ही होता है। 
वीआईपी अतिथियों के लिए स्वादिष्ट व्यंजन उसी समय भंडारा में शामिल होता है लेकिन अलग। यह उचित नहीं है वीआईपी क्या हर मिडिल क्लास परिवार में पूरी शब्जी आलू की शब्जी तथा एकाध मिष्ठान रोजाना नहीं तो सप्ताह में दो बार उपलब्ध रहता है इसलिए जो भंडारा लगाता है धार्मिक रिति रिवाज के अनुसार पंक्ति बद्ध होकर वही भोजन लेना चाहिए। अमुमन शहर में ही भंडारा होता है तो शहरी लोग जाकर अपने घर में भी खा सकते हैं।
भंडारा में जो भी आये अथवा आयोजकों को एक जैसा ही भोजन करना चाहिए। इसमें भेदभाव गरीब वीआईपी बनाने से धर्म कितना होगा उसका निर्णय स्वयं करना चाहिए। हर कार्यक्रम में उपस्थित भक्तों के लिए महाप्रसाद आवश्यक नहीं है ऐसा करने से बजट पर बोझ पङता है। उपस्थिति के बदले प्रसाद के नाम पर स्वादिष्ट भोजन कब तक खिलाया जायेगा। क्या यह संस्कृति दोनों पक्षों के उचित है।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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