माँ की ममता
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
फफक पङी लगी अश्रु झङी
वो तार तार चिथड़ों से ढकी
चंदा सा मुख, चहूं फैला दुख
वो जार जार हो रस्ते खङी
नवजात शिशु ले घर छोङा
दर दर खाने ठोकर निकली
ले व्यथित मन निज को कोसा
जाउंगी कहाँ अरे मैं पगली
वो द्वार द्वार पुकार रही
पर टुकड़ा एक ना पाने सकी
तङफ उठी नन्ही काया
उसे कुछ ना खिला पिला सकी
अटक अटक कर चलती रही
आसा थी कुछ मैं पाउंगी
चाहे पङे मरना मुझको
बच्चे को जरुर खिलाउंगी
इतने में एक सज्जन मिला
हमदर्दी उसने दिखलाई
रास्ता सिर्फ एक यही है
युक्ति उसने बतलाई
सोचा मरने से यही भला
समझौता उसने कर लिया
अस्मत लूटा टुकड़ा पाया
अन्न अंजलि में भर लिया
ममता की मुर्त ने सबको
त्याग अपना दिखा दिया
एक टुकड़े की कीमत क्या
*मदन* तुझे समझा दिया
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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