माँ का घाघरा
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

च्यानणी देवी के पांच बेटे होने के कारण जहाँ पिहर ससुराल में खुब मान सम्मान था, वहाँ रोज थाली बजती वहीं गुंद के लड्डू बनने से सारा गाँव सुगंधमय हो जाता। ससुर सास गाँव में मिष्ठान बांटते, वहीं पंडितों को पर्याप्त दक्षिणा देकर संतुष्ट करने के साथ साथ व्यापार में निरंतर बरकत हो रही थी। चिमनाराम धन्नाराम मनीराम हरीराम एवं परसराम पांचों को दुसरे गाँव पढने के लिए भेजते तो रास्ते में ही बिङी पीते साथ में रोटियों की पोटली खोलकर खाकर शाम को घर आ जाते। धीरे-धीरे दो तीन कक्षा पास करके दुकान में लगा दिए तो भी गटर मस्ती करते। साथियों को उधार दे देकर कभी लिखते भी नहीं थे। 

धीरे-धीरे सबकी शादी भी हो गई लेकिन पांचों आवारा बनकर दारू पीने लगे। पिताजी की मृत्यु के बाद गप्पे हांकने एवं लीडरी करते लेकिन कमाने की जगह बाप की संपत्ति एवं दुकान बेच बेच कर शाम को ही दारू पीने के साथ जुआ खेलने लगे। घर भी बांट लिया इसलिए सब अलग अलग खाना बनाने लगे जमीन से पर्याप्त अनाज आना भी बंद हो गया। पांचों के घर बच्चों से तो भर गये लेकिन टोटा नाचने लगा। फिर भी पीना ओर जुआ खेलना शुरू रहता था‌। 
धीरे-धीरे खाट बर्तन संदुक चिमटा बेलन भी जुए में रखे जाने लगे, लेकिन जुए के बाद जिसका समान होता वो बहू उठाकर ले जाती क्योंकि सब च्यानणी माँ के बेटे थे। माँ ने पांचों को बिठाकर समझाया तो चिमनाराम बोला यह ले तेरी तंबाकू की डब्बी धन्नाराम बोला यह ले माँ अनासीन गोलियों का पता ओर बोल क्या चाहिए। भले ही हम अपना शोक पूरा करें, लेकिन तुम्हारी सेवा ठाठ से होगी कोई कमी नहीं रहेगी। माँ चुप हो गई‌‌। 
अब घर में कुछ भी नहीं बचा तो जुए में क्या रखें, सबकुछ बिक गया तो परेशान मनीराम पांचों घरों में घुमने के बाद देखा कि माँ नहा रही है तो उसका घाघरा लाकर जुए में रख दिया। माँ चिल्लाने लगी तो चिमनाराम बोला कि बस पांच मिनट माँ इंतजार कर जो भी जीतेगा तुम्हारा ही बेटा होगा, कौनसा पराया है, जो अपने घर ले जायेगा। परसराम घाघरा जीत गया तो भागकर दिवार पर रखकर कहा माँ ले तेरा घाघरा। 
माँ ठंड में कुकङू बन गयी थी सब लाकर खाट पर सुलाया व बङे जोश के साथ कहा कि माँ भले ही हम दारू पीयें ओर जुआ खेलें, लेकिन पांचों ही तेरे बेटे हैं इसलिए निश्चिन्त रहना कि पांचों ही तुम्हारे लिए जी जान छिङकते है। माँ बोली- अच्छा होता कि मैं बांझ ही रहती। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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