देश में चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बन चुके हैं एक्जिट पोल
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
1930 में ही अमेरिका जैसे देश में एक्जिट पोल की उस समय की चुनाव के बाद परंपरा रही है, लेकिन 1996 से भारत में भी पुर्वानुमान के लिए एक्जिट पोल की शुरुआत हुई, लेकिन चुनाव आयोग के निर्देश पर एक साथ चुनाव होने से आखिरी चुनाव तक बंदीश लगा दी गई, क्योंकि दुसरे राज्य के चुनाव प्रभावित होते हैं। 
एक्जिट पोल से परिणाम आने से पहले ही राजनीतिक दलों द्वारा धङकन तेज हो जाती है तथा इस आधार पर अन्य छोटे छोटे दलों के विधायक खरीदने अथवा अपने दल में मंत्री पद देने के लिए शामिल करने के लिए प्रयास शुरू हो जाते हैं। छोटे छोटे दल एवं निर्दलीय विधायक एवं सांसद हमेशा झुकते पलङे में चढकर तुलने की फिराक में रहते हैं। राजनीतिक में यह सब जायज भी है, लेकिन समय से पहले ही राजनीतिक कसरत शुरू हो जाती है। 
ऐसा नहीं है कि एक्जिट पोल हमेशा सही निकलते हैं, क्योंकि यह अंदाज से लोगों से जानकारी हाशिल करने के बाद विज्ञानिक तकनीक से तैयार किया जाता है। एक्जिट पोल तैयार करने वाले काफी मार्जिन से संभावना भी दिखाते हैं, ताकि अमुमन सही निकले। कयी बार पासा पलट जाने से एक्जिट पोल धरे धराए रह जाते हैं। आजकल सभी राजनीतिक दल चुनाव से पहले ही अपना सर्वे करवाते हैं, ताकि मोटा मोटा अनुमान लग सकें। जो भी हो एक्जिट पोल आज एक चुनावी प्रक्रिया बन चूकी हैं, इसलिए इसके ईर्दगिर्द सभी राजनीतिक पंडित राजनीतिक दल एवं समाचार चैनल उलझे रहते हैं। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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