बांझ ( लघुकथा)
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
रामकोरी दयानंद सरपंच की पत्नी थी। गाँव में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं मैट्रिक पास दयानंद की पत्नी होना कोई मामूली बात नहीं थी लेकिन रामकोरी की शादी के दस बारह साल भी कोई संतान ना होने से जहाँ परिवार एवं माइके वाले दुखी थी वही रूढ़िवादी अनपढ़ लोग उसे बांझ समझकर ताने देते तथा कोई भी सकुन वाले अवसरों पर रामकोरी की उपस्थिति से कन्नी काटते थे। मुंह फैलाकर ओरते ं निकल जाती। ससुराल एवं मायके से कभी लङकी तो कभी लङका गौद लिया जाता लेकिन ईश्वर की इच्छा के आगे कोई उपाय नहीं था कि या तो बच्चे मर जाते अथवा बिमारी के कारण वापस ले जाते। 
     एक दिन एक साधू मेरे मायके में आया तो मैं पांच साल की थी भागकर लौटा भर कर पानी लाई तो साधू ने पी लिया। लेकिन भूख लगी है कहकर उदास हो गया। रामकोरी छबङी से दो तीन रोटी निकाल कर साधू बाबा को तोतली आवाज में लो खालो कहा तो साधू ने रोटी तो ले ली लेकिन रोने लगे तो गली के लोग इक्कठे हो गये कारण पुछने पर कुछ नहीं बताया जाते जाते उसकी माँ को बताया कि मैया इसको संतान नहीं होगी इसलिए मैं इसके भाग्य पर रो रहा हूँ। 
   रामकोरी मर गयी लेकिन मरते मरते एक अनाथ श्याम सुंदर के नाम अपनी जमीन कर गयी जिससे रामकोरी बेटे के साथ तीन पोतों की दादी बन गयी लेकिन सुख तो नहीं देख पाई। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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