सुंडो भूवा का अंतिम संस्कार ( लघुकथा)
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
सुंडो भुआ रक्षाबधेङ गाँव की संकटहारिणि देवी थी जो शादी के बाद ही ससुराल गयी लेकिन चंदूराम फुफाजी बिमार होने के कारण सुंडो भुआ अपनी सास के साथ सेवा करती लेकिन एक दिन फुफाजी सदा के लिए साथ छोड़ चले तो परशुराम अपनी बेटी सुंडो को साथ ले आये। हालांकि बालविधवा होने के कारण कहीं लोगों में संवेदना ओर हमदर्दी थी वही परिवार में तृष्कृत भी थी लेकिन सारे घर खेत के काम के अलावा गाँव में भजन कीर्तन करने किसी की ब्याह शादी जन्म मृत्यु सुख दुःख में दिनरात शामिल होने के कारण सुंडो भुआ को गाँव का मुखिया मानने लगे। गाँव के सरपंच एवं पंच भी सुंडो की राय लेकर ही फैसला करने लगे। 
   भुआ की चर्चा चारों ओर फैलने से आसपास के लोग उपहार लेकर आते तो वही अपनी समस्या का समाधान लेने आने लगे। वो अपने हिस्से में अलग रहने लगी लेकिन मेहमानों का खाना रहने की व्यवस्था सभी मिलकर करने लगे। अब गाँव के हर काम चाहे किसी तरह के हो भुआ की सहमति एवं अनुमति के बिना नहीं होते थे। 
     तीन दिनों से उनकी तबियत खराब होने के कारण सभी चिंतित थे बारी बारी से ड्यूटी करने के साथ साथ सेवा करती महिलाओं एवं युवाओं में निराशा छा गयी। गाँव में तब मातम छा गया जब खबर मिली कि भुआ रात में चल बसी। 
     गाँव वालों ने फुलों से अर्थी सजाई अनेक युवाओं ने मुंडन करवाया। घी लकङी चंदन के साथ भजन कीर्तन के साथ शौभायात्रा निकाली गई जिससे सब लोग दर्शन कर सके। आसपास के विद्वानों ने कथा भजन कीर्तन करने आये। ब्रह्म भोज के दिन दुध घी मिष्ठान इतने आये कि तीन दिन तक लोगों ने अलग अलग महाप्रसाद ग्रहण किया। आखिरी में सुंडो भुआ की समाधि बना दी गई। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम




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