कंवारी सास ( लघुकथा)

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

भगवानी का पांच साल की उम्र में ही रघुवीर शरण से विवाह कर दिया शरण 27 साल के साल के थे। विवाह रश्म पूरी होने के बाद सहमति की गई कि भगवानी सयानी होने के बाद मुलाकात ( गौना) करके विदा की जायेगी। 35 उंटों पर बारात लौट गयी। हर साल ससुराल से खिल मखाने बतासे डोरी मुंगफली का झोला भरकर तथा घाघरा चोली लेकर ससुर धनपत राय आकर फुदकती बहू को देकर चला जाता। भगवानी नये कपड़े पहनकर खिल बतासे खाती एवं सहेलियों में बांटती ग्यारह साल की हो गई। 12 साल की होने पर ससुराल जायेगी। धीरे-धीरे दोनों तरफ तैयारियां शुरू हो गई, लेकिन अचानक रघुवीर शरण की सांप काटने से मृत्यु हो गई तो रोते पीटते अंतिम संस्कार किया। 

अमरचंद ने साफ मना कर दिया कि भगवानी को ससुराल नहीं भेजूंगा, लेकिन ससुर धनपत राय झोली फैलाकर बहू को ले गया। सास ने अपने एक महीने के बेटे मूरली को गोद में डालकर कहा बहू तुम इसको बेटे की तरह पालना। जब मुरली विवाह के योग्य हो गया तो छोटी बहन मनभरी से शादी करके ले आई। भगवानी ना ब्याही रही ना ही कंवारी, इसलिए जब मूरली मनभरी की बेटी की शादी की तो जंवाई को पुछने पर बताया गया कि यह आपकी असली तो भगवानी देवी कंवारी सास है। सुनकर सब द्रवित हो गये। यह सत्य कथा तथा मेरे उपन्यास कंवारी सास का अंश है, जो किन्हीं कारणों से अभी तक नहीं छपा है, इसलिए यह लघुकथा के रूप में है। उस समय की परंपरा का दर्दनाक चित्रण है‌। 

पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

Comments