झूठ पाप नहीं, बल्कि अपराध है, फिर भी.......
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
भारतीय कानून में एक व्यवस्था है कि यदि कोई सच स्वीकार कर ले तो छुट भले ही ना मिले, लेकिन सहानुभूति एवं दया माया से आरोपी अथवा अपराधी को साधारण सजा मिलती है, लेकिन झूठ बोलने वाले गीता की कसम खाकर कहते हैं कि जो भी कहुंगा सच कहुंगा। दोनों पक्षों में कोई ना कोई तो झूठ बोल रहा है, जिससे सत्यता एवं जांच करने में काफी कठिनाई आती है। 
बहुत से देशों में कानून है कि यदि कोई झूठ बोल रहा है तो उसे अपराध मानकर गुनाह से भी अधिक सजा मिलती है। भारत अध्यात्मिक देश है, इसमें मान्यता है कि यदि कोई झूठ बोलेगा तो पाप लगेगा, लेकिन लोग तो सफेद झूठ बोलने में भी नहीं कतराते। बहुत से लोग बात बात झूठ बोलने में माहिर होते हैं, उन्हें यह भलिभांति मालूम होता है कि किसके सामने तो झूठ बोल रहा है, फिर भी वो बिना नफा नुक्सान के झूठ बोलता है। 
किवदंतियों के अनुसार कोई झूठ बोलेगा तो छत गिर जायेगी, झूठ बोलने से जवान बेटा मर जायेगा, ऐसा शायद सतयुग में होता होगा, इस युग में तो बिल्कुल ही नहीं। झूठ कुछ लोगों की खानदानी आदत होती है, जो चाहकर भी नहीं छोड़ पाता, भले ही उसे मित्रों में झूठे की उपाधि रोजाना मिलती हो। जितने शब्द बने हैं, उनकी प्रासंगिकता होती है कि जीवन के उस क्षण में जब कोई विकल्प ना बचा हो, किसी की जान बचाने के लिए झूठ का इस्तेमाल करने वाले को भी उस पर पश्चात करना चाहिए, ताकि कलंकित आत्मा फिर पवित्र हो सके। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर असम
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