नहीं रहे साहित्यिक पुरस्कारों से अलंकृत सेवा निवृत आईएएस अधिकारी रमेशचंद्र शर्मा, साहित्य जगत मे शोक की लहर

उमा ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र

गांव टकसाल, जिला सोलन में 21 मार्च1929 में जन्में सेवानिवृत आईएएस अधिकारी, साहित्यकार एवं कवि रमेशचंद्र शर्मा 95 वर्ष की आयु में आज सुबह इस मृत्युलोक को अलविदा कह गए। वे गत अनेक वर्षो से छोटा शिमला स्थित अपने घर "टकसाल हाउस" में रह रहे थे। कुछ माह लगातार  अस्वस्थ रहने के कारण उन्हें आईजीएमसी में उपचाराधीन भर्ती करवाया गया था, जहां आज प्रातः उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार कल यानी 21.09.2023 को 11बजे शिमला स्थित कनलोग शवदाह गृह में  किया जाएगा।
उनकी साहित्यक यात्रा की अगर बात करे विभिन्न प्रशासनिक पदो पर अपनी जिम्मेदारियो का निरवहन करते हुए वह लेखन मे भी हमेशा सक्रिय रहे। वर्ष 1970 व 1980  के दशक में लिखे उनके उपन्यास "बर्फ की राख"को सन 1983 में  हिमाचल कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी  द्वारा उपन्यास " तथा सन 1997 में उपन्यास "पांचाली" के लिए सर्वोच्च चंद्रधर शर्मा गुलेरी पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। रमेशचंद्र शर्मा की कहानियां "पगध्वनियां" 1968,  "कैक्टस के फूल" 1988  न केवल विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में बल्कि विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों से भी अनेक बार प्रसारित हुई। उनके नाटक संग्रह में "मैगनीलिया का फूल कमल"1987, "मुखौटा"1997 तथा "नवरंग" 1985 शामिल है। उनके नाटक "नवरंग" को सन 1997 में ऑल इंडिया आर्टिस्ट एसोसिएशन द्वारा बलराज साहनी पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त उनके चार काव्य संग्रह निर्जीव चादी 1987,एक स्वरता 1999,ईव तथा प्राथमिक शिशुगान(बाल साहित्य) सोलह प्रेम कहानियां,2019 भी प्रकाशित हुए हैं । 15 अगस्त 2012 में उन्हें हिमाचल लेखक एवं कलाकार संघ शिमला द्वारा यशपाल सम्मान से भी अलंकृत किया गया। हिमालय साहित्य संस्कृति एवं पर्यावरण मंच ने उन्हें  वर्ष 2017 में उन्हे  आजीवन उपलब्धि सम्मान से सम्मानित किया था।
वे हिमाचल प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी थे। शिमला की शायद ही कोई ऐसी साहित्यिक गोष्ठी हो, जिसमें रमेशचंद्र शर्मा न उपस्थित हो। जब व्हील चेयर पर उनका जीवन कटने लगा, उसके बाद भी वे गोष्ठियों में आते रहे। अद्भुत शख्सियत, चेहरे पर गजब की मुस्कान,विनम्रता, बस लेखन की बातें, किताबों की बातें, विलक्षण जीवट, उत्साह और साहित्य प्रेम हमारे लिए वह एक प्रेरणा थे और हमेशा रहेगे। अभी भी उनकी दो किताबें छपने को है।
शिमला, हिमाचल प्रदेश
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