एक नेशन एक इलैक्शन देश हित में, लेकिन जटिल
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
भारत देश बहुत ही जल्दबाजी में आजाद हुआ लेकिन इसके पीछे की राजनीति से दिल कांप उठता है यदि बंटवारा ना होता तो लाखों लोगों की अकाल मृत्यु बलात्कर लूट पाट जीवन भर की दुश्मनी नहीं होती। विषय परस्थितियों में दोनों देशों के प्रधानमंत्री अपना अपना झंडा फहराया दिया लेकिन विषबीज इतने गहराइयों में बो दिए गए जो खरपतवार की तरह अपने आप सालों साल पनप रहे हैं उनका खात्मा भी भयंकर होगा।
1947 में देश आजाद होने के बाद 1951 में लोकतांत्रिक प्रणाली से चुनाव हुए जो 1967 तक लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभा के एक साथ होते थे लेकिन तब तक राजनीतिक दल मजबूत होने लगे तो नये कीर्तिमान शुरू हो गये। यह संतुलन तब बिगाड़ गया जब राज्यों की सरकारों को गिराने का दौर शुरू हुआ। यदि कोई सरकार गिर जाती है अथवा केंद्र सरकार द्वारा किन्हीं कारणों से गिरा दी जाती है तो छह महीने में दोबारा गठित होनी चाहिए इसलिए लोकसभा विधानसभा का एक साथ चुनाव होना मुश्किल हो गया। उस समय क्षेत्रीय दल नाम मात्र के थे लेकिन आज देश में क्षेत्रीय दलों का बोलबाला ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाला दमखम है। जनता पार्टी राज के बाद काफी दल बनने लगे 1984 से 2014 तक कितनी सरकारें बनी तथा किसके साथ बनी एवं कितने महीने अथवा कितने साल चली। इस अवधी में प्रधानमंत्री भी बहुत बने। 
अब भारतीय राजनीति काफी बदल चुकी है, इसलिए  ऐसे जटिलता से भरे मुद्दे को संख्या बल से भले ही संयुक्त अधिवेशन में पास करवा लिया जाए, वरना एक हुए विपक्षी दल आसानी से ऐसा नहीं होने देंगे। पांच राज्यों में चुनाव होने है तो पंजाब हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक में हालिया चुनाव भी अङचन है। 
एक साथ यदि सर्वसम्मति से चुनाव होते हैं तो देश के बहुत ही लाभकारी होगा। बार बार खर्च होने वाले हजारों करोड़ रुपये बचेगे। चुनाव आयोग सुरक्षा बलों आयकर विभाग सहित स्थानीय प्रशासन डेढ़ महीने तक ठप्प होने से सभी विकास कार्य निश्चित रूप से बाधित होते हैं। टेलीविजन चैनलों पर रोजाना राजनीतिक बयान बाजी सुन-सुन कर लोग उब गए, वो भी जनता की मानसिक शांति के लिए लाभदायक होगा। बार-बार चुनाव होने से केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार जनता के कामों को ताक पर रखकर सालभर मनमाने तरिके से प्रचार प्रसार करने में लगे रहते हैं। अनावश्यक मुद्दे देश के हानिकारक है ओर भी बहुत कारण है, ऐसे में एक साथ चुनाव होने से बहुत से झंझटों से निजात मिलेगी। इरादा नेक है, लेकिन बाधाएं अनेक है।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर असम
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