भर जाता घाव तलवार का बोली का घाव भरे ना
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जब हम बचपन में जय भवानी किर्तन मंडल में भजन कीर्तन करते थे तथा गाँव में होने वाले किर्तनों में जाते थे तो बङे बङे भजनी आते थे जो काया एवं माया पर भजन गाते थे। इस से मेरी पढाई एवं सामाजिक प्रतिष्ठा पर प्रभाव पङता था, लेकिन मैं था कि- मन लाग्यो राम फकीरी मैं...
इसमें मंडल में हम काफी गायक थे, जिसमें सब से छोटा बालकवि एवं गायक मैं ही था। उस अवधि में एक गायक ने भजन सुनाया कि भर जाते घाव तलवार के बोली का घाव भरे ना। शायद मै भूल भी गया, क्योंकि भादरा रतनगढ़ में नवमी दसमी की पढ़ाई की। 1976 में छह महीने गंगटोक चले गया, लेकिन पहले से अप्लाई करने के लिए न्यायालय एवं पटवारी की नौकरी की परिक्षा के लिए मुझे आना पङा। मेरे अग्रज चानण मल मैं ओर अन्य पंचायती धर्मशाला गंगानगर में परिक्षा देने गए। अनुपगढ से हमारे जीजाजी दो टीफिन भरकर तीन दिन खाना लेकर आते व प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अन्य सहायता करते। 
खैर साधारण अंकों से पास हो गये, लेकिन साक्षात्कार में इतनी बड़ी राशि मांगी गई जो संभव नहीं थी। 19 सितम्बर 1977 में स्वर्गीय बंशीधर ब्रह्म दत बांवरी के साथ गोहाटी आया वो दोनों गोलाघाट चले गए। शादी के बाद फिर पढाई शुरू की जो 1998 तक चली तो मुझे 15 साल साहित्य पढने का अवसर मिला। समीक्षा करने के लिए मुझे अवसर मिला तो आज एक सांसद रमेश बिधुङी द्वारा लोकसभा में एक अन्य समुदाय के सांसद को बेहद अपमानजनक टीप्पणी की जो कभी भी किसी भी द्वारा स्वीकार नहीं की जा सकती। अब तो खुलेआम राजनीति में हिन्दू धर्म सनातन धर्म भगवान् राम रामचरितमानस सहित ना जाने क्या क्या कहा जाता है। उस पर जमकर राजनीति भी होती है, लेकिन जो घाव दिया वो सिर्फ क्षमायाचना रुपी मरहम से अवश्य भरा जा सकता है, लेकिन उन्हें कोई पछतावा भी नहीं होता, क्योंकि राजनीति में सब कुछ जायज माना जाता है, लेकिन सामाजिक जीवन में यह संभव नहीं जाने अनजाने में लोग बहुत बार अपमान करते हैं। कभी व्यंग्य में तो कभी मसखरी में एक दिन इतना साहस बढ जाता है कि दो पाट होने ही पङते है, इसलिए मनक्रमवचन से किसी की आत्मा को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए उसका दुख ( श्राप) पश्चाताप के लिए एक दिन अवश्य याद भी आयेगा तथा भोगना भी पङेगा। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर असम
Comments