शि.वा.ब्यूरो, शुकतीर्थ। पौराणिक तीर्थस्थली शुकतीर्थ के विश्वकर्मा मंदिर समिति में आयोजित श्रीमदभागवत कथा भक्ति रस महोत्सव में चैथे दिन रविवार को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की कथा का वर्णन किया गया। जिसमें श्रोता भाव विभोर होकर कथा का आनंद लेते रहे।श्रीमद्भागवत कथा में तीन संत केशवानन्द जी महाराज, श्याम शंकर मिश्रा जी ;छांगा पंडितद्ध, गीतानन्द जी महाराज जी को कथाव्यास पं. कृष्णाजी महाराज ने पटका पहनाकर स्वागत किया।
मुख्य यजमान राहुल चैधरी, बिंदु कुमार गुप्ता, नितिन गोयल, महिपाल शर्मा, शलभ गुप्ता एडवोकेट, हिमांशु गोयल, जर्नाधन विश्वकर्मा, कामेश्वर त्यागी, विशाल माहेश्वरी, विनीत माहेश्वरी, मांगेराम शर्मा, चिल्ली शर्मा, योगेश शर्मा, सुरेश शर्मा, अंशुल शर्मा, अभिषेक शर्मा, शिवांश शर्मा, आदित्य शर्मा, भानु वशिष्ठ, अनन्त वशिष्ठ, रक्षित कौशिक रहे जिनका महाराज जी द्वारा पटका पहनाकर स्वागत किया गया।श्रीमद् भागवत कथा भक्ति रस महोत्सव में भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे। कथा व्यास पं. कृष्णानन्द जी सागर महाराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों का उद्धार व पृथ्वी को दैत्य शक्तियों से मुक्त कराने के लिए अवतार लिया था। उन्होंने कहा कि जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान धरती पर अवतरित होते हैं। कथा प्रसंग सुनाते हुए कथा व्यास ने बताया कि जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी, तो भगवान कृष्ण को अवतरित होना पड़ा। सात संतानों के बाद जब देवकी गर्भवती हुई, तो उसे अपनी इस संतान की मृत्यु का भय सता रहा था। भगवान की लीला वे स्वयं ही समझ सकते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म लेते ही जेल के सभी बंधन टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण गोकुल पहुंच गए।
श्रीकृष्ण के जन्म की इसी शुभ घड़ी का उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा था। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। अष्टमी तिथि को रात्रिकाल अवतार लेने का प्रमुख कारण उनका चंद्रवंशी होना है। श्रीकृष्ण चंद्रवंशी, चंद्रदेव उनके पूर्वज और बुध चंद्रमा के पुत्र हैं। इसी कारण चंद्रवंश में पुत्रवत जन्म लेने के लिए कृष्ण ने बुधवार का दिन चुना है। कथावाचक ने कहा रोहिणी चंद्रमा की प्रिय पत्नी और नक्षत्र हैं। इसी कारण कृष्ण रोहिणी नक्षत्र में जन्मे। अष्टमी तिथि शक्ति का प्रतीक है, कृष्ण शक्तिसंपन्न, स्वमंभू व परब्रह्म है इसीलिए वो अष्टमी को अवतरित हुए। कृष्ण के रात्रिकाल में जन्म लेने का कारण ये है कि चंद्रमा रात्रि में निकलता है और उन्होंने अपने पूर्वज की उपस्थिति में जन्म लिया। कि श्री हरि विष्णु श्रीकृष्ण ने योजनाबद्ध रूप से पृथ्वी पर मथुरापुरी में अवतार लिया। कथा का संगीतमयी वर्णन सुन श्रद्धालुगण झूमने लगे।
कथा के समापन पर श्रोताओं को प्रशाद वितरित किया। इस दौरान रेणू तोमर, अनुज तोमर, अनन्त वशिष्ठ, भानु वशिष्ठ, विनोद शर्मा, शीतल शर्मा, विकास माहेश्वरी, जयमाला माहेश्वरी, हेमा माहेश्वरी, नव्या माहेश्वरी, श्रेष्ठ माहेश्वरी, प्रज्जवल माहेश्वरी,अमित तोमर, रविंद्र सिंह, लक्ष्मी तोमर, रश्मि तोमर, सविता तोमर, राजबाला तोमर, सतबाला तोमर, पुष्पा तोमर, मनु लाटियान, मीतू लाटियान, ममता लाटियान, पे्रमलता त्यागी, कुुमुध, उषा त्यागी, शशि त्यागी, तुलसा देवी, रिंकी श्रीवास्तव, अनमोल श्रीवास्तव, महेश श्रीवास्तव, तरूणा शर्मा, रक्षित कौशिक, कुलदीप कौशिक, अल्का कौशिक, संसार सिंह, अनन्त वशिष्ठ, भानु वशिष्ठ, विनोद शर्मा, शीतल शर्मा, विकास माहेश्वरी, जयमाला माहेश्वरी, हेमा माहेश्वरी, नव्या माहेश्वरी, श्रेष्ठ माहेश्वरी, प्रज्जवल माहेश्वरी, तरूणा, अनिता माहेश्वरी, अनिल माहेश्वरी, पूनम गुप्ता, राघव गुप्ता, सचिन गुप्ता, निशा माहेश्वरी, डिम्पल माहेश्वरी, अनिता माहेश्वरी, रितिका माहेश्वरी, अर्पिता माहेश्वरी, अंश माहेश्वरी, विनीत माहेश्वरी, शालू माहेश्वरी, गौरव वर्मा, सारिका वर्मा, सौरभ वर्मा, संजीव गर्ग, सुमन गर्ग, अंशु, रामचंद्र, दीपा शर्मा, धीरज शर्मा, बबीता, महिपाल सिंह, कविता, मीनू गुप्ता, अनिल वर्मा सर्राफ, अशोक वर्मा, साधना वर्मा, कीर्ति वर्मा आदि श्रद्धालु मौजूद रहे।