आतिश
प्रीति मधु शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जरूरी था रास्ते बदलना
मगर चाहता कौन था
गुजारिश थी समय की
जो कहीं लूट गई
बार हृदय पर कर
ख्वाब को कांच का बना कर
चकनाचूर कर गई।
लाचार सा मानो वक्त हो गया
मुंह को सिले कहीं सो गया
दर्द था नदिया की लहरों में
दूर किनारे पर वो भी रूठ गया।
हूक लगा लगा कर थक गए
ढलती शामों के द्वार भी फीके पड़ गए
दीदार की तलब थी
रोज़ खिड़की पर बैठ 
कुछ शामें याद करना
मगर कुछ भ्रम अभी और बाकी था।
ख़ाली ख़ाली सा सब लग रहा था
हर दर्द बेदर्द बन रहा था
कहां से लाते वो सुकून
जो उड़ती धूल में कहीं खो गया
मानो मेरे वजूद को भी उसमें डूबो दिया।
लद्दा (बिलासपुर) हिमाचल प्रदेश
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