शिवपुराण से....... (386) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता, द्वितीय (सती) खण्ड

दक्षयज्ञ का समाचार पा सती का शिव से वहां चलने के लिए अनुरोध, दक्ष के शिवद्रोह को जानकर भगवान् शिव की आज्ञा से देवी सती का पिता के यज्ञमण्डप की ओर शिवगणों के साथ प्रस्थान

गतांक से आगे....... उन्हीं आपको मेरे दुष्ट पिता ने इस समय आमन्त्रित नहीं किया गया है। प्रभो! उस दुरात्मा का अभिप्राय क्या है, वह सब मैं जानना चाहती हूं। साथ ही वहां आये हुए सम्पूर्ण  दुरात्मा देवर्षियों के मनोभाव का भी मैं पता लगाना चाहती हूं। अतः प्रभो! मैं आज ही पिता के यज्ञ में जाती हूं। नाथ! महेश्वर! आप मुझे वहां जाने की आज्ञा दे दें। देवी सती के ऐसा कहने पर सर्वज्ञ, सर्वद्रष्टा, सृष्टिकर्ता एवं कल्याण स्वरूप साक्षात् भगवान् रूद्र उनसे इस प्रकार बोले। 

शिव ने कहा-उत्तम व्रत का पालन करने वाली देवि! यदि इस प्रकार तुम्हारी रूचि वहां अवश्य जाने के लिए हो गयी है तो मेरी आज्ञा से तुम शीघ्र अपने पिता के यज्ञ में जाओ। यह नन्दी वृषभ सुसज्जित है, तुम एक महारानी के अनुरूप राजोपचार साथ ले सादर इसपर सवार हो बहुसंख्यक प्रमथगणों के साथ यात्रा करो। प्रिये! इस विभूषित वृषभ पर आरूढ़ होओ। रूद्र के इस प्रकार आदेश देने पर सुन्दर आभूषणों से अलंकृत सती देवी सब साधनों से युक्त हो पिता के घर की ओर चलीं। परमात्मा शिव ने उन्हें सुन्दर वस्त्र, आभूषण तथा परम उज्जवल छत्र, चामर आदि महाराजोचित उपचार दिये। भगवान् शिव की आज्ञा से साठ हजार रूद्रगण बड़ी प्रसन्नता और महान् उत्साह के साथ कौतूहलपूर्वक सती के साथ गये।                                                  (शेष आगामी अंक में)

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