डॉ. अवधेश कुमार "अवध", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
सालों तक जो लोग कांग्रेस के खिलाफ बोलने को देश के खिलाफ बोलना साबित करते थे, अब वही लोग भाजपा के खिलाफ बोलने को देशहित में बोलना मानते हैं। असल में ऐसे लोगों का देश से कुछ लेना-देना नहीं है, ऐसे लोग सत्ता का पक्ष और सत्ता का विरोध देशहित में नहीं चुनते, बल्कि स्वहित में चुनते हैं। इनको जहाँ मुफ्त में पत्तल चाटने को मिलता है, उसकी जयकारी लगाते हैं, जहाँ नहीं मिलता उसके विरोध में हो जाते हैं। देश के जन सामान्य को इतनी कुशलता से भरमाते हैं कि आम जन इनको देश का प्रखर शुभचिंतक मान लेता है। इनका न कोई सिद्धांत होता है न ईमान। इनके लिए देश मात्र स्वार्थ सिद्धि का अड्डा लगता है और जनता को ये अपने हित में भीड़ समझते हैं। इनको आज के समय में मीडिया गोदी लगता है और पहले धवल लगता था। ऐसे लोग इस बात पर चर्चा कभी नहीं करते कि भारत में कई बड़े नेताओं के अपने मीडिया हाउस, अपने पत्रकार और अपने लेखक रहे हैं जो गधे को घोड़ा और घोड़े को गधा सिद्ध करना ही अपना परम उद्देश्य मानते हैं। ये आस्तीन के साँप से भी अधिक खतरनाक होते हैं, क्योंकि ये भोली जनशक्ति को अपने साथ जोड़े रखने में अति कुशल होते हैं। ऐसे फ्री पत्तल चाटुओं से भगवान बचाएँ।
साहित्यकार व अभियंता मैक्स सीमेंट, ईस्ट जयन्तिया हिल्स मेघालय