छोटे लाल सारस्वत, शिक्षावाहिनी समाचार पत्र।
राणा और सब सामंतों की,
बैठक आपात हो रही थी।
हमला करना है किस प्रकार,
इस विषय पे बात हो रही थी।।
जो हुई थी हल्दी घाटी में,
वह भूल नहीं दोहरानी है।
पर्वतों में छिपी शत्रु सेना,
बाहर मैदान में लानी है।।
रहकर चौकन्ना हर प्रकार,
रात्रि में आक्रमण करना है।
गौरिल्ला युद्ध प्रणाली से,
उनके प्राणों को हरना है।।
अपनी समस्त सेना को,
दो भागों में विभाजित करना है।
फिर चारों तरफ घेर कर के
दुश्मन को पराजित करना है।।
राणा ने रणनीतीनुसार था,
सर्व प्रथम यह काम किया।
मेवाड़ की सारी सेना को,
था दो भागों में बांट दिया।।
सेना के प्रथम भाग का खुद,
महाराणा ने नेत्रत्व लिया।
दूसरे भाग का योद्धा,
कुंवर अमर सिंह को नेत्रत्व दिया।।
फिर अंत में जब आसौज विजय,
दशमी का पावन दिन आया।
अरि का विनाश करने के लिए,
सैनिकों में बहुत जोश छाया।।
उस दिन अंतिम सहभोज किया,
और अश्वों को भी करवाया।
अपने अपने प्रिय जनों से मिल,
सबने अंतिम आशीष पाया।।
तन पर केसरिया वस्त्र पहन,
केसरिया ध्वज फहरा डाला।
मेवाड़ी गौरव का निसान,
महावीरों ने लहरा डाला।।
मेवाड़ी भील लड़ाकों ने,
अपने आराध्य का ध्यान किया।
आयुधों का बहु विधि पूजन कर,
समरांगण को प्रस्थान किया।।
मंदिर जाकर राणा ने *उडेश्वर*,
*महादेव* को नमन किया।
माथे पर भस्म त्रिपुंड लगाकर,
समर भूमि को गमन किया।।
फिर *आड़ा मथारा* पहाड़ी पर,
चढ़ उद्बोधन देने के लिये।
सारी सेना को उद्बोधन से,
जोश में भर देने के लिये।।
फिर ओजस्वी उद्बोधन से,
सेना में जोश जगाया था।
मेवाड़ धरा की आन वान का,
सबको होश कराया था।।
सांगा ने देश की खातिर,
अस्सी घाव देह पर खाये थे।
इस मातृभूमि की बलि वेदी पर,
प्राण प्रसून चढ़ाये थे।।
पद्मिनि, करुणावति, फूल कंवर,
अपने सतीत्व की शान लिए।
कूदीं जौहर की ज्वाला में,
मुख पर अक्षय मुस्कान लिए।।
मेवाड़ के सब योद्धाओं का,
उद्बोधन में जब बल गाया।
सुनकर के वीर सैनिकों की,
धमनियों में रक्त उबल आया।।
ओजस्वी उद्बोधन सुनकर,
सेना में जोश आ गया था।
मुगलों के प्रति सब वीरों के,
मन में अति रोष छा गया था।।
सेना में जोश भर गया था,
श्री एक लिंग जयकारों से।
गूंजी थीं दसों दिशाएँ,
हर हर महादेव के नारों से।।
डूंगरपुर और प्रतापगढ़,
दोनों ने मेवाड़ का साथ दिया।
आपात काल में राणा को,
निज मैत्री का विश्वास दिया।।
बीते थे तीन प्रहर फिर अंतिम,
प्रहर निशा का था आया।
बनकर के काल वे टूट पड़े,
दुश्मन मन में अति घबराया।।
मेवाड़ के योद्धा कफ़न बांधकर,
गजब ढहाने निकले थे।
रण स्थल में शत्रुओं का,
नामोनिशां मिटाने निकले थे।।
क्रमशः
अजमेर, राजस्थान
बैठक आपात हो रही थी।
हमला करना है किस प्रकार,
इस विषय पे बात हो रही थी।।
जो हुई थी हल्दी घाटी में,
वह भूल नहीं दोहरानी है।
पर्वतों में छिपी शत्रु सेना,
बाहर मैदान में लानी है।।
रहकर चौकन्ना हर प्रकार,
रात्रि में आक्रमण करना है।
गौरिल्ला युद्ध प्रणाली से,
उनके प्राणों को हरना है।।
अपनी समस्त सेना को,
दो भागों में विभाजित करना है।
फिर चारों तरफ घेर कर के
दुश्मन को पराजित करना है।।
राणा ने रणनीतीनुसार था,
सर्व प्रथम यह काम किया।
मेवाड़ की सारी सेना को,
था दो भागों में बांट दिया।।
सेना के प्रथम भाग का खुद,
महाराणा ने नेत्रत्व लिया।
दूसरे भाग का योद्धा,
कुंवर अमर सिंह को नेत्रत्व दिया।।
फिर अंत में जब आसौज विजय,
दशमी का पावन दिन आया।
अरि का विनाश करने के लिए,
सैनिकों में बहुत जोश छाया।।
उस दिन अंतिम सहभोज किया,
और अश्वों को भी करवाया।
अपने अपने प्रिय जनों से मिल,
सबने अंतिम आशीष पाया।।
तन पर केसरिया वस्त्र पहन,
केसरिया ध्वज फहरा डाला।
मेवाड़ी गौरव का निसान,
महावीरों ने लहरा डाला।।
मेवाड़ी भील लड़ाकों ने,
अपने आराध्य का ध्यान किया।
आयुधों का बहु विधि पूजन कर,
समरांगण को प्रस्थान किया।।
मंदिर जाकर राणा ने *उडेश्वर*,
*महादेव* को नमन किया।
माथे पर भस्म त्रिपुंड लगाकर,
समर भूमि को गमन किया।।
फिर *आड़ा मथारा* पहाड़ी पर,
चढ़ उद्बोधन देने के लिये।
सारी सेना को उद्बोधन से,
जोश में भर देने के लिये।।
फिर ओजस्वी उद्बोधन से,
सेना में जोश जगाया था।
मेवाड़ धरा की आन वान का,
सबको होश कराया था।।
सांगा ने देश की खातिर,
अस्सी घाव देह पर खाये थे।
इस मातृभूमि की बलि वेदी पर,
प्राण प्रसून चढ़ाये थे।।
पद्मिनि, करुणावति, फूल कंवर,
अपने सतीत्व की शान लिए।
कूदीं जौहर की ज्वाला में,
मुख पर अक्षय मुस्कान लिए।।
मेवाड़ के सब योद्धाओं का,
उद्बोधन में जब बल गाया।
सुनकर के वीर सैनिकों की,
धमनियों में रक्त उबल आया।।
ओजस्वी उद्बोधन सुनकर,
सेना में जोश आ गया था।
मुगलों के प्रति सब वीरों के,
मन में अति रोष छा गया था।।
सेना में जोश भर गया था,
श्री एक लिंग जयकारों से।
गूंजी थीं दसों दिशाएँ,
हर हर महादेव के नारों से।।
डूंगरपुर और प्रतापगढ़,
दोनों ने मेवाड़ का साथ दिया।
आपात काल में राणा को,
निज मैत्री का विश्वास दिया।।
बीते थे तीन प्रहर फिर अंतिम,
प्रहर निशा का था आया।
बनकर के काल वे टूट पड़े,
दुश्मन मन में अति घबराया।।
मेवाड़ के योद्धा कफ़न बांधकर,
गजब ढहाने निकले थे।
रण स्थल में शत्रुओं का,
नामोनिशां मिटाने निकले थे।।
क्रमशः
अजमेर, राजस्थान