समय
रेखा घनश्याम गौड़, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
एक समय ऐसा था साथ रहते न थकते थे,
वक्त ऐसा बदला तेरी खबर से भी गये,
कभी ऐसा भी होता था तुम
इंतज़ार करते मेरा,
आज दिन ऐसा भी है 
बरसों से हम 
ताकते ही रह गये रास्ता तेरा।
तुम थे तो गुल थे, 
बरकचे थे, 
हर तरफ़ रोशन था जहाँ,
अब तो हमें ख़ुद नहीं पता 
हम थे कहाँ और पहुँच गये कहाँ॥
तुम थे तो ठिकाना था मेरे भी होने का,
तुम क्या गये, 
हम अपने होने के एहसास से भी गये॥
जयपुर, राजस्थान
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