उस्मानिया विश्वविद्यालय में जनसंचार माध्यमों में भारतीय भाषाओं का योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, हैदराबाद। शासकीय स्नातक महाविद्यालय सीताफलमंडी, उस्मानिया विश्वविद्यालय तथा गुरु विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में 30-31 जनवरी को "जनसंचार माध्यमों में भारतीय भाषाओं का योगदान" द्वि दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में प्रो. गणेश और जी. स्वामीनाथन ने द्वीप प्रज्वलन करके संगोष्ठी का उद्घाटन किया। उद्घाटन सत्र में डॉ. मायादेवी वाघमारे, डॉ. जी.एस.आर राजेंद्र सिंह (JD, CCE Govt. of Telangana), डॉ. विकास शर्मा और डॉ सुलक्षणा अहलावत आदि गणमान्य शिक्षाविद उपस्थित थे। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. अनुपमा ने संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत की। संगोष्ठी के बीज व्याख्यान में प्रो. डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने वर्तमान युग में जनसंचार की प्रासंगिकता और हिंदी शब्दावली, हिंदी शब्दों के सूक्ष्म अर्थ गायब होते जाने पर प्रकाश डालते हुए भारतीय भाषाओं के योगदान पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। 

संगोष्ठी प्रथम सत्र में पाँच पप्रत्र पढे गए। इस सत्र में डॉ नरेश सिहाग एडवोकेट ने भाषा के महत्व एवं भाषा के अभाव में पनप रही बेरोजगारी पर चिंता व्यक्त की। डॉ. एम. एफ. सलीम ने इलेक्ट्रॉनिक एवं सोशल मीडिया में भारतीय भाषाओं का अधिक प्रयोग होने पर बल देते हुए सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी के खतरे से बचने की बात की। इस सत्र की अंतिम वक्ता के रूप में होमनिधि शर्मा ने मीडिया की भूमिका पर दृष्टिपात करते हुए प्रामाणिक जानकारी के लिए सरकारी समाचार चैनलों को देखने का सुझाव देकर युनिकोड के महत्व को बताया। इस सत्र के अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. संगीता व्यास जी ने सभी प्रपत्रों के सार को बताते हुए जनसंचार एवं भारतीय भाषाओं के अंतर्संबंध को बताते हुए इसके महत्व को बताया।             
दुसरे सत्र में विभिन्न महाविद्यालयों के स्नातक के छात्र, विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी एवं शासकीय महाविद्यालय के अध्यापक जिसमें डॉ. अर्पना, डॉ. चतुर्वेदी, डॉ. सिताराम राठोड, डॉ. हरदा राजेश, डॉ. सुधा और डॉ. श्यामसुंदर जी आदि ने जनसंचार एवं मीडिया पर शोध प्रपत्र का वाचन किया। इस सत्र के अध्यक्षणीय भाषण में डॉ. शामराव राठोड जी ने सभी छात्रों, शोधार्थीयों एवं अध्यापकों को सराहते हुए जनसंचार एवं भारतीय भाषाओं पर कार्य करने के बारे में अपने विचार प्रकट किए। 
संगोष्ठी के दूसरे दिन के पहले सत्र की अध्यक्षता प्रो. डॉ. करण सिंह ऊटवाल ने की। इस सत्र में चार वक्ताओं ने अपने प्रपत्र की प्रस्तुती दी। डॉ. प्रियदर्शी ने अपने वक्तव्य में फिल्मी गीतों की सार्थकता पर अपने विचार प्रस्तुत किए। डॉ. शशिकांत मिश्रा जी ने अपने प्रपत्र में पत्रकारिता के अनुभवों पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान पत्रकारिता के महत्व पर अपनी बात रखी। डॉ. अर्चना झा जी ने हिंदी मीडिया में रोजगार की संभावनाओं पर अपने विचार रखे। डॉ. मोहम्मद रियाज खान जी ने हिंदी अध्यापकों का अपने अध्यापन में उच्चारण, वर्तनी पर बल देने की बात की। डॉ. गुड्डु जी ने अपने प्रपत्र में कहानी के तत्वों पर प्रकाश डालते हुए संचार के महत्व को बताया। सत्र के अध्यक्षीय भाषण में डॉ. करण सिंह जी सभी प्रपत्रों को सराहा और पत्रकारिता, जनसंचार के महत्व को बताया। डॉ. करण जी ने हिंदी में आधुनिक शोध में दोहराव एवं गुणवत्ता को सक्षम बनाने के लिए सुझाव दिए। भोजन अवकाश के बाद छात्रों ने तेलंगाना की संस्कृति जैसे बतकम्मा, बोनालु के गीत एवं नृत्य प्रस्तुत किया एवं हरियाणा  कला परिषद के कलाकार महाबीर गुड्डु जी एवं उनके टीम ने हरियाणा के लोक संगीत और नृत्य की प्रस्तुति में ने सभी श्रोताओं का मन मोह लिया। 
संगोष्ठी के समापन समारोह में प्रो. डॉ. रेखा शर्मा, डॉ. गंगाधर वानोडे और हरियाणा कला परिषद के निदेशक डॉ. संजय भसीन उपस्थित थे। प्रो. डॉ. रेखा शर्मा जी ने जनसंचार माध्यमों में भारतीय भाषाओं का योगदान पर संगोष्ठी के आयोजन के लिए बधाई दी और डॉ. गंगाधर वानोडे ने संगोष्ठी में प्रस्तुत किए गए शोध प्रपत्रों की सराहना करते हुए सभी को हार्दिक बधाई दी। हरियाणा कला परिषद के निदेशक डॉ. संजय भसीन ने प्रो. रेखा शर्मा, डॉ. गंगाधर वानोडे आदि का सम्मान किया।  संगोष्ठी की संयोजक डॉ.अनुपमा ने संगोष्ठी का सार प्रस्तुत किया, डॉ. एम. रामचंद्रम ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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