मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
ऐ बिजली तुम कहाँ पे गिरोगी, बता दो हमें हम यहाँ रहते हैं
घनघोर अँधेरा घटाटोप छायी, श्याम वर्ण सी अंधियारी रातें
देती हिलोरें शर्द ऋतु सी, बताओ हमें हम क्यों सहते हैं
खो जाती हो तुम किस दुनिया में, नजर ढुंढती है कहाँ खोई तुम
होती तसल्ली दिदार तेरे, जब जी भर भर देख लेते हैं
तङफाओ ना आओ आगोश में, अरमां हमारे पुरे करो तुम,
मदन सिंघल ऐ चमक चांदनी अब, आने को हम खुद कहते हैं।
ऐ बिजली तुम कहाँ पे गिरोगी, बता दो हमें हम यहाँ रहते हैं
घनघोर अँधेरा घटाटोप छायी, श्याम वर्ण सी अंधियारी रातें
देती हिलोरें शर्द ऋतु सी, बताओ हमें हम क्यों सहते हैं
खो जाती हो तुम किस दुनिया में, नजर ढुंढती है कहाँ खोई तुम
होती तसल्ली दिदार तेरे, जब जी भर भर देख लेते हैं
तङफाओ ना आओ आगोश में, अरमां हमारे पुरे करो तुम,
मदन सिंघल ऐ चमक चांदनी अब, आने को हम खुद कहते हैं।
पत्रकार व साहित्यकार शिलचर, असम