मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
इन कजरारी आंखों ने,
मुझपे ऐसा वार किया
बच ना सका मैं उस कातिल से,
जिसपे मैने इतवार किया
प्यार की ज्योति जलाई मैंने,
खुन से सिंचा यह पौधा,
जब जब पङी जरुरत उसको,
सतंभन सौ बार किया
रुह में मैरी सिमट गयी वो,
उन यादों की वो घङियां
लिया पैरों की बन बैठी,
जीना मेरा दुश्वार किया
निंदियाँ ना आती, जिया ना लागे,
ऐ कातिल तेरे वो वादे,
मदन अकेला कहाँ गयी वो,
जिससे तुने प्यार किया
पत्रकार साहित्यकार शिलचर असम