ऋषिता मसानिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मैया मोरी मैं नहीं आज नहायो।
भोर भई मुख धोवन के बहाने,
बाथरूम मोहें पठायो।
बर्फीलो पानी वहां देखो,
प्राण गले में आयो।
मैं बालक ठण्ड को मारो,
त्राहि-त्राहि चिल्लायो।
घरवाले सब बैर पड़े हैं,
बरबस मुख धुलवायो।
बाहर देखो कोहरा गिरत है
कोई नहिं दिखायो।
तू जननी मन की अति कारी,
डेड कहि कुटिवायो।
जिय तेरे कछु भेद दिखत है,
तब ही नहीं बचायो।
ये ले अपनी बाल्टी साबुनिया,
बहुत ही नांच नचायो।
लिखत ऋषिता तब हंसी है मैया,
खाली ड्राई-क्लीन करायो।
कान पकड़ के कहत कलुआ,
गुरवर मोरे मैं नहीं आज नहायो।
23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश