डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जिसने दुख का किया न अनुभव,
वह सुख को क्या जानेगा,
जिसके पैर न पड़ी बिवाई,
वह पीर गैर की क्या जानेगा?
नहीं चला जो कभी धूप में,
बस सुख की छाया में पलता,
धूप में चलकर छाया में आ,
उस अनुभूति को क्या जानेगा?
नहीं चला जो भूखा मग में,
नहीं भूख की पीड़ा झेली,
गूलर में भी स्वाद छिपा है,
बिना भूख के क्या जानेगा?
सदा चला जो पकड़कर अंगुली,
माँ बाप की छाँव पला,
बैशाखी के साथ चला,
विश्वास से चलना क्या जानेगा?
विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53-महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर उत्तर प्रदेश