डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
ज़िन्दगी कितनी हसीं,
उपवन में जाकर देखिए,
परिन्दों की चहचहाहट,
भौंरों का गुंजन देखिए।
भूख से व्याकुल कोई,
काम दीजिए उसके हाथ को,
ज़िन्दगी की खिलखिलाहट,
उसके मुख पर देखिए।
हो धरा जब तप्त,
और नंगे पाँव कोई चल रहा,
वृक्ष की ज़रा सी छाँव में,
ज़िन्दगी की ख़ुशी देखिए।
जब सभी कुछ खो रहा हो,
कुछ पाने की न आस हो,
प्यास से व्याकुल को कतरा,
सुकून मुख पर देखिए।
विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53-महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर उत्तर प्रदेश