अ कीर्ति वर्द्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कभी कभी सर्वोत्तम की चाहना में,
हम उत्तम को खो देते हैं,
भीतर कलुषित मन रहता है,
भीतर कलुषित मन रहता है,
हम बाहर की काया धो देते हैं।
ज्यादा से ज्यादा पाने की चाहत,
ज्यादा से ज्यादा पाने की चाहत,
कम का सुख लेने नहीं देती,
मृगतृष्णा के जाल उलझकर,
मृगतृष्णा के जाल उलझकर,
हम नागफनी घर में बो देते हैं।
मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश