कार्तिक परिच्छा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
विश्व विख्यात् कोहिनूर हीरा जगन्नाथ जी का है। लंदन के नये ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स (राजा) को वह कोहिनूर हीरा जगन्नाथ पुरी वापस कर देना चाहिए, क्योंकि महाराजा रंजीत सिंह के बेटे दिलिप सिंह से लार्ड डलहौजी ने कोहिनूर हीरा छीना था, जबकि उसके पहले महाराजा रंजीत सिंह ने कोहिनूर को जगन्नाथ जी को दान में देने की वसीयत कर चुके थे। महारानी के निधन के बाद अनिल धीर एवं अन्य बुद्धिजीवियों ने तथ्यों के आलोक में इस मांग को रखा है। झारखंड स्थित अतीत के ओड़िया देशी सरायकेला के जगन्नाथ सेवा समिति के पूर्व सचिव तथा चाईबासा जगन्नाथ मंदिर में छेरा पंहरा रश्म अदायगी करने वाले कार्तिक कुमार परिच्छा ने अंग्रेज विलियम डेलरिम्पल के एक बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि कोहिनूर के कई दावेदार हैं। अनिल धीर ने कहा है कि हीरे का वैध और अंतिम दावा पुरी के जगन्नाथ मंदिर का है।
जगन्नाथ मंदिर के साथ सिख संबंध पर शोध करने वाले अनिल धीर के अनुसार इस बात के पर्याप्त दस्तावेजी प्रमाण हैं कि महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 में अपनी मृत्यु से पहले हीरा जगन्नाथ मंदिर को दे दिया था। एक शिविर से ब्रिटिश सरकार के राजनीतिक एजेंट द्वारा 2 जुलाई 1829 को लिखा गया एक पत्र नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में संरक्षित है। भारत सरकार के कार्यवाहक सचिव टीए मैडॉक को संबोधित पत्र में कहा गया है कि हालांकि उस घटना पर मेरी रिपोर्ट आने से पहले भारत के गवर्नर जनरल को महाराजा रणजीत सिंह के निधन की सूचना मिली होगी। उन्होंने पत्र में लिखा है कि मैं यह घोषणा करना अपना कर्तव्य समझता हूं कि 27वें अल्टीमो पर लाहौर में उनकी महारानी की मृत्यु हो गई है। अपनी बीमारी के अंतिम दिनों के दौरान महामहिम ने घोषणा की कि उन्होंने 50 लाख रुपये के अनुमानित मूल्य के गहने और अन्य संपत्ति सहित प्रसिद्ध कोह-ए-नूर (कोहिनूर) हीरे को पुरी में जगन्नाथ के मंदिर में भेजने का निर्देश दिया है। पिछले साल एबी त्रिपाठी, बैकुंठ पाणिग्रही और अनिल धीर की टीम ने भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के निदेशक से इस अनुरोध के साथ मुलाकात की थी कि रंजीत सिंह की इच्छाओं का उल्लेख करने वाला मूल पत्र अभिलेखागार के भुवनेश्वर केंद्र में प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
अनिल धीर के अनुसार यह एक स्थापित तथ्य है कि महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की तुलना में पुरी के जगन्नाथ मंदिर को अधिक सोना और चांदी का दान दिया था। उन्हें पुरी की यात्रा करने की आजीवन तड़प थी, लेकिन उनकी दुर्बलताओं ने उन्हें इतनी लंबी यात्रा करने से रोक दिया था। ठीक दस साल बाद अंग्रेजों ने 1849 में रणजीत सिंह के बेटे दलीप सिंह से हीरा छीन लिया था। हालांकि उन्हें पुरी में भगवान जगन्नाथ को दिए जाने के बारे में पूरी जानकारी थी। कोहिनूर की वापसी का दावा पहली बार स्वतंत्रता के तुरंत बाद 1947 में भारत सरकार द्वारा किया गया था। 1953 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के राज्याभिषेक के वर्ष में एक और अनुरोध किया गया था, लेकिन वास्तव में लड़ाई 1976 में शुरू हुई थी, जब जुल्फिकार अली भुट्टो ने ब्रिटिश प्रधान मंत्री जेम्स कैलाघन को लिखे एक पत्र में पाकिस्तान को हीरे की वापसी के लिए एक औपचारिक अनुरोध प्रस्तुत किया था, लेकिन पाकिस्तान के दावे को अस्वीकार कर दिया गया था। उस समय भुट्टो को एक लिखित आश्वासन दिया गया था कि कोई सवाल ही नहीं है कि ब्रिटेन इसे किसी अन्य देश को सौंप देगा। कुछ ही समय बाद तेहरान के एक बड़े अखबार ने कहा था कि मणि ईरान को लौटा दी जानी चाहिए। नवंबर 2000 में तालिबान शासन ने अफगानिस्तान को हीरे की वापसी की मांग की।
अप्रैल 2016 में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कोहिनूर हीरा अंग्रेजों द्वारा न तो जबरन लिया गया और न ही चुराया गया था, बल्कि महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारियों द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को उपहार में दिया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने एक आरटीआई जवाब में यह कहकर सरकार के रुख का खंडन करते हुए मामले को और उलझा दिया कि हीरा वास्तव में दलीप सिंह द्वारा इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को समर्पण किया गया था। जवाहरलाल नेहरू ने एक बार कहा था कि हीरे सम्राटों के लिए है और भारत को सम्राटों की आवश्यकता नहीं है। अक्टूबर 1997 में स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर महारानी एलिजाबेथ की भारत और पाकिस्तान की राजकीय यात्रा के दौरान भारत और ब्रिटेन के कई सिखों ने कोहिनूर हीरे की वापसी की मांग की थी।
अनिल धीर के स्वर को अधिक मजबूत करते हुए सरायकेला जगन्नाथ मंदिर के पूर्व सचिव एवं पश्चिम सिंहभूम चाईबासा ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर में छेरा पंहरा रश्म को निभाने वाले कार्तिक कुमार परिच्छा ने कहा कि ओडिशा सरकार और मंदिर बोर्ड को दावा पेश करना चाहिए। उन्होंने बताया कि पिछले वर्षों वे कई विधायकों से मिले थे और उनसे हीरा वापस लेने के लिए राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करने के लिए कहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रिकॉर्ड के अनुसार कोहिनूर 213 वर्षों तक दिल्ली में मुगल शासकों के कब्जे में रहा। उसके बाद कंधार और काबुल में 66 वर्षों तक और लगभग 172 वर्षों तक अंग्रेजों के पास रहा है।
सरायकेला, पश्चिम सिंहभूम झारखण्ड़